मेरी आवारगी

' आओ कुछ बांट लेते हैं '

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खुशी और गम तो
सब बांटते हैँ
चलो हम अपने
जेहन बांट लेते हैँ.
दिन-रात,
नीदे-उनीदे ख्वाब, कुछ कतरनें और
इबारतेँ वो
अहसास अपने
हिस्से के कुछ इस
कदर काट लेते हैं , धरा- गगन सब
बांट लेते हैँ.
न तुम याद आओ न हम भूल जांऐं
ये हुनर तराश लेते हैँ.
बीती बातों से कुछ लफ्ज छांट लेते हैं,
अश्क और इश्क का रिश्ता तोड़ देते हैं.
कुछ नया पराग इस फिजा में बहे,
लुटाओ बारिशों को
फिर एक बार गरज-बरश लेते हैं. 
न जाने कहां वक्त रुके
और थमें डोर सांसों की,
क्यों कसक रहे दिल में
अभी ही जी भर के जी लेते हैं.
मरना नसीब हो न हो तेरी बांहों में
फिर ये आरजू भी क्यों मरे,
गोद में सर रख के तेरी बच्चों सा रो लेते है
सारी इबारतें काली न हो जाएं इस कागजी स्याही से,
कुछ रंग इनमे भर ही लेते हैं,
न तुम भूल जाना न हम याद आएंगे
ये नजर और नजारे सब बांट लेते है 
तुम नसीब मत बनो हमारा,
हर करम हम तुम्हें सौंप देते है.
जब जी आए आया-जाया करो
बेरोक-टोक वो दरवाजा भी खोल देते हैं.
इबादत भूल मत जाना,
हम अपने-अपने खुदा बांट लेते हैं.
आओ तुम्हारे साथ शायद
आखिरी मर्तबा सुकून तलाश लेते हैं.
सच और झूठ अपने-अपने हिस्से के
खर्च देते हैं,
कंजूसी मत करो अब हमदम
कि कहर और जहर अब हम सब फांक लेते हैं.
जेहन बांट लेते हैं......... 
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एक पुरानी कविता ' आओ कुछ बांट लेते है'
... आवारा

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