मेरी आवारगी

मैं यूँ ही चाहता हूं तुझसे मिलना


श्याम बने हैं राधिका और राधा बन गईं श्याम/ तस्वीर : साभार गूगल

मैं तुमसे वहीं मिलता हूँ रोज। 
जहां मिट गया है तेरे-मेरे का भेद। 
एक-दूसरे में घुल गई है हमारी ऊब। 
रूहानी है तुम्हारी हर छुअन। 
देह से परे है मिलन का अहसास।
ठहरे पानी सा शांत है मन। 
तनहाइयाँ सिमटकर तुम्हारी आंख में ओझल हैं। 
हर चाय की प्याली में है, तुम्हारे साथ की मिठास।  
अब मौन ही है, हमारे बीच की एक मात्र भाषा। 
हर अनकहा तुम्हारी कजरी आंखों से पढ़ता हूं। 
हर रोज पढ़ने नहीं पड़ते तुम्हारे मन के भाव।
तुम्हारी देह से आत्मा तक का हर स्पर्श याद है मुझे। 
मैं तुझ में इतना घुल जाना चाहता हूँ कि मैं ही न बचूं। 
तब एक रोज ऐसा भी होगा कि मैं-मैं न रहूंगा। 
बस तुम्हीं में घुल जाऊंगा सारा का सारा। 
मेरा अस्तित्व ही नहीं होगा तुम्हारे सिवाय। 
मुझे लगता है उसी शून्य से उपजी होगी समाधि।
वहीं होंगे शाश्वत प्रेम के दर्शन। 
ठीक वहीं मिले होंगे राधा को श्याम।
यकीनन वहीं मिली होंगी राधिका अपने श्याम से। 
मैं भी वहीं उसी शून्य में चाहता हूं, तुमसे मिलना। 
बस यूं ही तुमसे मिलना, बस यूं ही तुमसे मिलना।

@तुम्हारा आवारा
©दीपक गौतम

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