मेरी आवारगी

अथ श्री सीताफल कथा : मुकेश नेमा

फ़ोटो साभार :  मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन फेसबुक पेज। 

रामफल के दर्शन बहुत पहले कभी हुये थे ! ग्वालियर रहते हुये रमाशंकर सिंह जी के बताये पता चला कि हनुमान फल भी होता है ! और हम तब माने जब उन्होंने खिला दिये ! पर सीताफल के स्वाद की लीला तो अपरंपार है ! हमारे मप्र के आष्टा  और होशंगाबाद के सीताफल जिसने नही खाये उसको मान लेना चाहिये कि उसने अब तक धरती पर जितने भी दिन बिताये हैं, फालतू ही चले गये है ! 
वैसे तो ये शरीफ़ा है, लेकिन अब इसे सीताफल कहते हैं, उसका कारण बहुत दिलचस्प है. क्यूंकि जब आप इसे खरीदने जाएंगे तो पूछेंगे कि "शरीफ़े क्या भाव दिए", और शराफ़त का कोई मोल नहीं होता. इसीलिए जनता ने इसका नाम बदल कर सीताफल कर दिया. ये मुनव्वर राणा की कही बात है जो व्हाया ब्रज भूषण झा मुझे पता चली ! हो सकता है इसका नाम शरीफ़ा इसलिये पडा हो क्योकि ये शरीफ़ इंसानों की ही तरह कम दिखता है !
अफ़सोस यही है ,ये शराफ़त से साल भर नही आता ! नाथद्वारा गये हैं कभी आप ! वहाँ भगवान जी दिखते कम और छुपते ज़्यादा है ! कब पट बंद हो जायें ,कितनी देर बंद रहें ,कोई ठिकाना है नहीं ! यही हाल सीताफल का है ! पानी के बुलबुले जैसी चीज़ ! ये दशहरे के आसपास से आना शुरू होता है और दीवाली का ख़ुमार उतरते-उतरते गायब हो जाता है !
सीताफल ख़रीदना भी कलाकारी है ! एक तो इसकी दुकानों पर इसे चाहने वाले घेरे खड़े रहते है ! अब आप दुकान पर है ! दुकान पर टोकरियों में भरे पड़े ,बड़ी बड़ी आँखें झपकाते सीताफल आपको ललचा रहे हैं ! मन होता है कि सारे ही कब्जिया लिये जायें ! पर हमेशा अपने चाहने से क्या होता है ! विधि का विधान तो ये है कि ये ज़्यादा वक़्त तक टिकते नही ! ऐसे में एकाध टोकरी पर ही मन को राज़ी करना पड़ता है ! फिर आप सोचते हैं मेरे हिस्से मीठे वाले ही लगें ,तो ऐसा भी नहीं होता ! बेचने वाला हमेशा आपसे होशियार निकलता है ! छाँटने वो देता नही ! उसने टोकरी में नीचे की तरफ़ से छोटे ,काले ,पुराने या कच्चे सीताफल छुपाये होते है ! पर इसे लेकर मन ख़राब करने का कोई मतलब है नही ! सीजन में खाये कुछेक दर्जन बेहतरीन सीताफल ही आत्मा तक ठंडक पहुँचाने के लिये काफ़ी होते है ! कुल मिलाकर सीताफल ख़रीदना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम है । दुनिया का हर पति सीताफल ख़रीदने के बाद लताड़ा गया है, इसलिये समझदारी इसी में है कि जब भी सीताफल ख़रीदना हो तो दुकान पर अपनी पत्नी के पीछे ही खड़े रहें !
इसे खाना भी बडे कौशल का काम है ! अनाड़ियों के बस की बात नही है सीताफल खाना ! बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है ! दरअसल जो खाने लायक चीज है इसकी वो इसके बीजों के चारों तरफ़ लिपटी हुई होती है ! अब आप चार-छह दाने मुंह में डालते हैं ! आपकी जीभ हर बीज के ऊपर लिपटे गूदे को उससे अलग करती है ! उस अमृत जैसे दिव्य गूदे को गले के हवाले कर बीजों को बाहर थूकना होता है ! इस वक्त यह भी ध्यान रखना होता है कि बीज पेट मे ना चला जाये ! या गूदा ना थूक दिया जाये !
और फिर आप लाख सावधानी बरत लें ! सीताफल खाते वक्त आप इसके स्वाद के चक्कर मे कोई ना कोई गलती कर ही जाते है ! यह आपको ईमानदार नहीं रहने देता ! इसके चक्कर मे शराफ़त साथ छोड़ जाती है आपका ! सीताफल खाने मे महारथी लोग अच्छे ,मीठे सीताफल को फौरन ताड़ लेते है ! आप छाँट कर ,बडी आँख वाले बडे ,सीताफल कब्जाना चाहते हैं ! खाते वक़्त हड़बड़ी में एकाध बीज गटक लेते है ! थूके गये बीज प्लेट के बाहर जा गिरते है ! इसका ना देखने लायक गूदा आपकी शर्ट पर ,पता नहीं कैसे टपक पड़ता है ! ऐसे मे आपकी बीबी, आपकी अम्मां की परवरिश पर सवाल खड़े करती है !
और ये सब होता है इस सीताफल की वजह से ! ठीक ही है ये साल भर नहीं आता !





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