मेरी आवारगी

तुम्हारा स्पर्श आत्मा की चिकित्सा है


चित्र साभार : गूगल डॉट कॉम
       

मैं एक दिन बीती याद की तरह, तुम्हारे जीवन से शब्द-शब्द झर जाऊंगा। 

बिना उचारे, बिन कुछ कहे बस यूं ही, एक पूरा का पूरा काल लिए अपने साथ। 


मेरे-तुम्हारे बीच की चुप्पियों को खबर किए बगैर, तुम्हारी आंख के पोर से बह निकलूंगा आँसू बनकर । 

तुम्हारी गदेलियों की छुअन से हवा हो जाऊंगा। जीवन का सारा खारापन बस खुद में समेटे, 

मेरी ओर से तुम्हें यही आखिरी नमकीन पानी मिलेगा। 


शायद किसी दिन मैं तुम्हारी स्मृतियों से भी चुक जाऊं ! जैसे बूढ़े बरगद की छाँव भुला देता है हर मुसाफिर,

 मैं भी भुला दिया जाऊंगा। क्योंकि मैंने जीवन में तुम्हें प्रेम करने के सिवाय कुछ भी तो नहीं किया। 


तुम्हारे लिए एक संदूक छोड़ जाऊंगा, तुम भी अपनी सारी उदासियां निचोड़कर उसी में भर देना। 

ये प्रेम की गठरी जब भी खुलेगी, बीते वक्त की इबारतें हवा में तैर जाएंगी। 

मैं वहीं तुम्हारे जेहन से किसी धुंध की मानिंद उठूंगा ताजा खुशबू बनकर।


मुझे दिल के उसी सन्दूक में कैद रखना, जहां तुमने अधूरे चुम्बनों के किस्से जज़्ब कर रखे हैं, 

तुम्हारा स्पर्श मेरी आत्मा की चिकित्सा है...।





© दीपक गौतम 

-30 मई 2020

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