मेरी आवारगी

हम नहीं कह पाएंगे वो कहानियां ?

चित्र साभार : गूगल

हम नहीं कह पाएंगे इस समय की
वो कहानियां जो तुम जानते हो।
क्योंकि तुम्हारी आत्मा ने जो नर्क 
बीते कुछ दिनों में भोगा है। 
हम उसके बस मूक दर्शक हैं। 
हमने अपनी बेशर्मी को लाचारी का
लिहाफ़ ओढ़ा दिया है। 
कुछ खाने के पैकेट, राशन, चप्पलें 
या कुछ और मदद देकर हम अपनी 
आत्मग्लानि से मुक्त होना चाहते हैं। 
हम कैसे कह दें कि जब तुम भूखे पेट
चल रहे थे पैदल। 
ठीक उसी समय हमने चस्पा की हैं 
पकवानों की तस्वीरें इधर-उधर। 
जब दम तोड़ रही थी तुम्हारी हिम्मत, 
हमने चिपका दिया हौसले से भरा स्टेटस। 
कोरोना काल में दिखे तुम बेबसी और लाचारी 
को पटक देते, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते।  
अपने घर-गांव की वापस बढ़ते तुम्हारे कदम गवाह हैं कि हम शहर में तुम्हारा पेट नहीं भर सकते हैं। 
ये इस सदी की सबसे साहसिक यात्रा है, जिसने 
हमारी मानवता को निचोड़कर हमें सूखा दिया है। 
तुमने बीते कल भी नवनिर्माण और सृजन में 
त्याग-बलिदान का परिचय दिया। 
आज भी तुमने अपनी भूख को मात देकर 
मौत से जंग लड़ी है। 
हम कैसे कह दें कि तुम्हारे इस सफर में 
कुछ रोटियां खून से सन गईं !
हम नहीं बन सके तुम्हारी रफ्तार कि
ये यात्रा ऐसी भीषण त्रासदी में न बदले। 
हम नहीं कह सकते ये कहानियां कि हमने दो खाईयों में बंटा हुआ समाज बनाया है !! एक घरों में कैद है सकुशल, एक लगातार सड़क पर चल रहा पैदल ?

© दीपक गौतम
18 मई 2020

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