सांकेतिक तस्वीर/ साभार : गूगल |
-: संजय उवाच :-
प्रश्न : संजय भारतवर्ष में इन दिनों कोविड -19 से भी तेज संक्रमण किसका है ?
उत्तर : राजन, मैं जहां तक देख पा रहा हूँ कि राजनीति का संक्रमण बहुत तीव्र है. गांव की चौपाल से लेकर शहर के चौक-चौराहों और पान के ठेलों तक यत्र-तत्र सर्वत्र व्याप्त है. इतना ही नहीं यह व्यक्ति को इतना ज्यादा संक्रमित कर दे रहा है कि आदमी के पारस्परिक मैत्री संबंधों को भी अपनी चपेट में ले रहा है. अब राजनीति की वैचारिक असहमतियां द्वंद और बैर में परिवर्तित हो रही हैं राजन. ऐसे दृश्य भी सामने आ रहे हैं कि चौराहे से निकली राजनीतिक बहसें जिंदगियों में विष घोल रही हैं.
प्रश्न : क्या तुम यह कहना चाह रहे हो कि राजनीति विषैली हो गई है ?
उत्तर : महाराज, राजनीति में तो विषैलापन आदिकाल से ही रहा है. परन्तु पूर्व में लोग सम्भवतः विषपान करने की कला जानते थे. वे गरल को मानो शिव की भांति कंठ पर धारण कर हर वैचारिक असहमति वाले मनुष्य के प्रति बैर का भाव उत्पन्न नहीं होने देते थे. अपनी-अपनी असहमतियों के द्वार पर खड़े होकर भी एक-दूसरे के विचारों का बड़ा आदर करते थे. इससे संबंधों में तनाव की स्थिति पैदा ही नहीं होती थी. वर्तमान में संभावना का यह द्वार बंद होता जा रहा है और संकुचित मानसिकता ने मनुष्य को जड़ कर दिया है महाराज.
प्रश्न : तुम तनिक दिव्य दृष्टि से देखकर बताओ कि राजनीति के इस विष का निपटान कैसे होगा संजय?
उत्तर : राजन, इस विष का निपटान इसलिए भी सम्भव नहीं हो पा रहा है कि राजनीति से संक्रमित व्यक्ति के मस्तिष्क में वैचारिक असहमति के इतर सहज भक्ति का भी प्रादुर्भाव हो गया है. अब वह किसी एक विचारधारा का समर्थक कम भक्त ज्यादा हो गया है भगवन. और आप तो जानते ही हैं कि भक्त के लिए अपने भगवान से बढ़कर कुछ नहीं है. क्योंकि आस्था के सामने तर्क बौने हो जाते हैं. भक्त अपने भगवान के प्रति आस्थावान है. तर्क के सारे द्वार उसने पहले ही बंद कर दिए हैं प्रभु.
प्रश्न : तो क्या राजनीति भ्रामक होती जा रही है संजय ?
उत्तर : महाराज, मैं देख रहा हूँ कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राज्य करने के लिए नेता जी लोग जनता को सब्जबाग बहुत दिखाते हैं. वर्षों से यही हो रहा है राजन. तरह-तरह के वादे, दावे और प्रलोभनों के दम पर सत्ता पर आने के बाद राजनीति दलों का सुशासन कुछ दिनों में ही साफ नज़र आ जाता है. जनता को रामराज्य का मधुपान कराने के बाद राज्य कैसा मिलता है यह आपसे भी छिपा नहीं है प्रभु. यह भ्रामक ही तो है कि कथनी और करनी में फर्क साफ दिखता है.
प्रश्न : इस समय विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थकों की क्या स्थिति है संजय ?
उत्तर : महाराज, समर्थक तो अक्सर स्वयं को ठगा महसूस करते हैं. असल में उन्हें पता ही नहीं होता है कि उनका नेता सत्तासुख के लिए कब दल बदल लेगा. वे बेचारे दलगत विचारधारा का झंडा बुलंद करते रहते हैं और अगले ही पल उनका नेता अपनी विचारधारा कुर्सी के यज्ञ में हवन कर देता है. मैं स्पष्ट कर देता हूँ राजन कि धुरविरोधी विचारधाराओं के नेतागण भी गले मिलकर सरकारें बना लेते हैं, क्योंकि वे वास्तव में एक-दूसरे के हितैषी हैं. भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के नाम पर समर्थकों को आपस में बांट देते हैं. वर्षों ये यही चला आ रहा है. इस समय राजनीति व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का खेल बनकर रह गई है महाराज.
प्रश्न : संजय, सत्ता से सवाल कर उसे आईना दिखाने वाला मीडिया क्या कर रहा है संजय ?
उत्तर : महाराज, मैं देख रहा हूँ कि भारत में 80 फीसदी से अधिक मीडिया संस्थान वास्तव में व्यवसायी और व्यापारी वर्ग के हाथ में हैं. ऐसे में सत्ता से निकटता और उससे अपने व्यापारिक हित साधने के लिये सच्चाई को बड़े ही अलग प्रकार से परोसा जाता है. अब इससे ज्यादा क्या कहूँ कि आप विरदावली बखान करने वाले भाट और चारणों से तो परिचित ही हैं. एक साथ एक आवाज में यदि 80 प्रतिशत मीडिया लगातार झूठ भी दिखायेगा, तो वो सच हो जायेगा. लोकतंत्र में एक साथ प्रतिशत ज्यादा है, शोर अधिक है, वही सच हो जाता है. परन्तु वास्तव में तो सच कई पर्तों में दबा होता है.
प्रश्न : क्या जनता इस भ्रमजाल से निकल पाएगी संजय ?
उत्तर : महाराज, जनता तो सब जानती है. लेकिन राजनीति और राजनेताओं की माया और लीला ने उसे जकड़ रखा है. वह उसके पार नहीं जा पा रही है. इसीलिए उसे धर्म, समाज, जाति, राष्ट्रवाद, क्षेत्रवाद, बोली-भाषा या विचारधारा आदि के नाम पर बांटकर आपसी भाईचारा, प्रेम और सौहार्द नष्ट किया जा रहा है. यह सामाजिक तानेबाने को छिन्न करने की कोशिश है भगवन. ताजा उदाहरण वर्तमान में मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक चीन और नेपाल के मुद्दों का है. लोग इस पर बहस कम युध्द ज्यादा कर रहे हैं. ये राजनीतिक बहसें अब सकारात्मक नहीं रह गई हैं राजन. इन्होंने लोगों का सुख-चैन छीन लिया है. उस पर भी नेतागण अपने मुखारविंद से जो अमृतवाणी निकालते हैं, उसके बाद के हालात तो गृहयुध्द जैसे बन जाते हैं. मुझे क्षमा करें लेकिन इस स्थिति में जनता भला इस भ्रमजाल से कैसे निकल पाएगी.
© दीपक गौतम
संजयउवाच #sanjayuvach
नोट : #संंजयउवाच महाभारत के दो प्रमुख पात्रों के सहारे विभिन्न विषयों पर व्यंग्य लिखने की कोशिश है. इसका महाभारत से कोई सम्बन्ध नहीं है.
यह ब्लॉग मीडिया स्वराज और मध्यमत नाम की प्रतिष्ठित वेबसाइट में प्रकाशित हो चुका है.
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