मेरी आवारगी

ये अबाबील का नहीं, उम्मीदों का घोंसला है


                                    
                                    सारी तस्वीरें हमने अपने झुनझुने से ली हैैं।  


उम्मीद किस चिड़िया का नाम है। ये मुझे चिड़िये के इस नीड़ को देखकर समझ आया था। इसे घोसला समझने की भूल मत करना। ये किसी का महल है, जो बबूल के पेड़ की डाल पर लटका है। ये ईश्वर के प्रति आस्था और भरोसे का बड़ा प्रतीक है। उस सर्वशक्तिमान की बनाई इस दुनिया में प्रकृति ने हर किसी को अपनी गोद में सहारा दे रखा है। वो कहते हैं न कि "जिसका कोई उसका तो खुदा है यारों"। यहां एक जिंदगी पल रही है। संत कह गए हैं कि "राम भरोसे जे रहें पर्वत पर हरियायें"। निराशा जब चारों तरफ से आपको घेर ले तो प्रकृति और अपने आसपास से जीवन के छोटे-छोटे सबक लेकर मुसीबतों से उबरना ही एक मुस्तैद कदम है। ये उम्मीद मुझे गोविंदधाम आश्रम, गुनौर की ओर से संचालित फॉर्महाउस में बरबस ही मिल गई, जहां आवारा गायों के लिए सेवाभाव से गौशाला सहित और दूसरे प्रकल्प भी संचालित हो रहे हैं। 
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