मेरी आवारगी

तुम जैसा भाई हो तो दोस्तों के बिना जीवन की कल्पना सम्भव है : जन्म दिन की बधाई बड्डे

ये अभी महीने भर पहले का चित्र है। इसमें पिता-पुत्र साथ में भोजन कर रहे हैं। इस चित्र को देखकर मुझे जो सबसे पहला कैप्शन सूझा वो कुछ यूं था कि मानो जैसे हल्कू किसान अपने बच्चे को खेत ले आया हो और अब दरी बिछाकर खाना खिला रहा हो।


जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएं Aditya Gautam बड्डे। ये तस्वीर केवल पिता-पुत्र के लाड़ या प्रेम की प्रतीकात्मक तस्वीरें नहीं हैं। रिश्तों के नाजुक डोर की गवाह हैं। फुलौरी अब बड़े हो चले हैं और अब अपने लाड़ के नाम को लेकर हमसे जिरह भी करते रहते हैं कि चाचू आपने मेरा ऐसा नाम क्यों रखा। हम चाहकर भी उन्हें समझा नहीं पाते हैं कि बेटा जब आप पैदा हुए थे, तब आपकी गोलमटोल शक्ल देखकर हमको सबसे पहला शब्द फुलौरी ही सूझा था। क्योंकि जैसे तुम हमारी जान के पिंजरे हो वैसे ही खाने का अपना सबसे पसंदीदा पकवान कढ़ी है, वही कढ़ी जिसमें अम्मा बेसन की फुलौरी डालकर बनाती हैं। अब इनको कभी तसल्ली से समझाएंगे कि बेटा आप हमारी जिंदगी की कढ़ी वाली फुलौरी हो, जिसके बिना जीवन बेस्वाद था।

बहरहाल बात इनके लाड़ की हो रही थी, जो ये अपने पिता जी पर कुड़ेलते रहते हैं। अब जब भैया घर-गांव से कोसों दूर हैं, लेकिन जब ऐसी तस्वीरें वहां से आती हैं। तो जी को बड़ा सुकून मिलता है। 

आज फुलौरी के पिता जी यानि हमारे बड्डे का जन्म दिन है। भैया जिंदगी की तमाम बेअदबियों के बावजूद जिस तरह हंसकर आपने बाहर रहते हुए घर-परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी संभाला है, वैसा मैं शायद यहां घर-गांव में रहकर भी नहीं कर पा रहा हूं। जब भी थक जाता हूं तो आपने हमेशा हाथ थामकर यही कहा कि रुकना मत, बढ़ता रह, चलता रहा, बहता रह सब सही होगा। आप मेरे हर फैसले में शामिल रहे, मुझे कभी अकेला नहीं पड़ने दिया। 

मुझे याद है आपकी वो पहली थपकी जब 25 साल पहले बड़े दादा के सतना से लापता हो जाने की खबर गांव आई थी। आपने उस दिन के बाद से मुझे कभी अकेला नहीं होने दिया। मेरे हर फैसले को पापा के सामने सही ठहराते हुए उन्हें कन्विंस करते रहे कि नहीं ये अब ठीक जा रहा है। आप तो जानते ही हो कि बिगड़ैल, मनमौजी, बेपरवाह-लापरवाह और फितरत से आवारा तो मैं हमेशा से रहा हूं। अब भी शायद यही कह सकता हूं कि उसी आवारगी को हवा देते हुए यहां तक बढ़ आया हूं। पता नहीं कितना सही कर पाया या क्या गलत किया। आप लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरा या नहीं। बस इतना जानता हूं कि घर में सबसे छोटा होने का बहुत फायदा उठाया है मैंने। मेरी जिद के आगे पापा और आप हमेशा हंसते-हंसते झुकते आये हैं। 

मुझे वो दिन भी अब तक नहीं भूलता है जब मैंने मास्टर ऑफ जर्नलिज्म करने का अपना निर्णय आप सबके सामने रखा था। पापा चाहते थे कि मैं आपकी तरह कम्प्यूटर्स में या इंजीनियरिंग या कुछ और बेहतर कर लूं। क्योंकि पत्रकारों के हाल पिता जी बहुत करीब से यहां सतना में देख समझ ही रहे थे। उन्हें लगता था कि न जाने जर्नलिज्म में रहकर ये जी-खा पाएगा या नहीं। तब आपने ही पिता जी को हौसला दिया और कहा कि अब ये सही कर रहा है, उसे करने दो। ये कागज ही काले करेगा और कुछ इसके वश का नहीं है। आपने सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर ली, तब जाकर पापा को राहत मिली। 

मैं कभी कह नहीं पाता, लेकिन आप मेरा सबसे बड़ा संबल हो भैया। आज जिंदगी जहां भी है, जैसी है। मैं एकदम मजे में हूं। आपके कहे अनुसार बस लगातार बह रहा हूं। मैं चलना और आगे बढ़ना नहीं भूला हूं। मैं चलता रहूंगा। मुझ जैसे बिगड़ैल भाई को बर्दास्त करने के लिए शुक्रिया बड़े भाई। जीवनभर इतना अपार स्नेह और प्रेम कुड़ेलने के लिए शुक्रिया। यूँ ही हंसते - मुस्कराते रहना। तुम जैसे भाई दुनिया में हो जाएं तो दोस्तों के बिना भी जीवन की कल्पना की जा सकती है। जीवन की संभावना तलाशी जा सकती है। लव यू ब्रो। 💝 एक बार और जन्म दिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। गदर काटे रहो। जल्द मिलते हैं।  
  
© दीपक गौतम 

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