भोपाल मेरी जान फिर मिलेंगे। जानेमन तुम्हारी गलियों में भटकना अब भी जी को बेहद सुकून देता है। तुमसे इश्क था, है और रहेगा। ऐ मेरी क़ज़ा (मौत) के शहर तुमने ही अपने इश्क और अश्क से हमको बार-बार मिटाया - बनाया है। और एक दिन तुम्हारी फिजा में ही मिल जाना है। इसलिए तुमसे तो कभी अपना विदा या अलविदा हो ही नहीं सकता। फिर मिलेंगे...जिंदगी जिंदाबाद। इश्क और आवारगी आबाद रहे। जहान में मोहब्बत पसरती रहे। साबुत रूहों को सुकून मिले।
इस कोरोना काल में जिनसे मिल सके उनका बहुत-बहुत शुक्रिया। और जिनका दीदार नहीं मिला या जो 'ईद के चाँद' हैं, उनसे मुलाकात उधार रही। जल्द मिलेंगे।
Sachin Shrivastava सर। Neeraj Nayyar भैया। Gagan Nayar सर। नाम तो और बहुत से हैं, मगर टैग करके गाली नहीं खानी है हमको। इसलिए अगली बार जरूर मिलेंगे।
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