मेरी आवारगी

ओ री सखी फागुन आयो री


अपनी सखी तो यही हैं। सो यही तस्वीर चस्पा है। 


माघ पटा गओ री...ओ री सखी 
अब फागुन आयो री।
मन उल्लास भरो, तन मोरा हर्षायो री। 
रंग-चितरंग उड़न अब लागो, 
उमड़ - घुमड़ जियरा बौरानो, 
पिय के हिय में जी लिपटायो री।  
अमियन की बगिया में अब झूलन 
को मौसम आयो री। 
...ओ री सखी फागुन आयो री। 

कासे कहूँ अब पीर जिया की। 
तन - मन खोयो सुध में पिया की। 
गए बहुत दिन बीत बिरह में, उनके 
लौटब को सन्देशा ऋतुराज बसन्त 
है लायो री। 
ज्यों-ज्यों फूलत हैं अमुअन के बिरबा, 
त्यों-त्यों मोहिं फगनहटा अंग लगायो री। 
...ओ री सखी फागुन आयो री। 

जी के रंग में घुल रही भंगिया। 
कट रहीं फसलैं, चल रहे हंसिया। 
फूल रहीं महुअन की बगियां। 
खिल गए दिन, मिलहें चैन की रतियाँ।
होरन संग हो रईं सजन से बतियाँ। 
बिरहन को मिल गये सजन फगुनिया।
मन में महक रई मोरे नई- नई धनिया। 
करेजवा में बिध रई बैहर फगुनिया। 
अब मोहे जी का कष्ट बिसरायो री। 
...ओ री सखी फागुन आयो री। 

चौराहन में फिर फागन का राग सुनायो री। 
होली में पिय संग रंगहैं जियरा ललचायो री। 
बैरंग चिठियन को फगनहटा जवाब लायो री
अबहिं से घुल रओ अमुअन को रस, बिरबन में जो फूलत करहौं जी खों और लुभायो री।
...ओ री सखी फागुन आयो री। 

सखी पूष गयो जाड़न खों तापे, 
मोरो साजन परदेस कमायो री। 
देखत - देखत उनकी रस्ता उनकी
अब तो सुदिन है आयो री। 
जो तकबे से प्राण ऊब गए,
लग्यो सजन बिसरायो री।
बिरह बीत गई जे सन्देशा 
फिर बसंत लै आयो री। 
अब सब अंग रंगू संग श्याम पिया के,  
हाँ मोरा जियरा चैन है पायो री।
...ओ री सखी फागुन आयो री। 

- 27 फरवरी 2021

© दीपक गौतम 

#आवाराखयाल #aawarakhayal

यह कविता प्रतिष्ठित वेबसाइट मध्यमत  और  मीडिया  स्वराज में प्रकाशित  हो चुकी है . 

नोट :  गांव में हैं तो खेत में बैठे-बैठे ही फगुना गए थे। Prem तो नाम ही है कक्का का और प्रेम अमर होता है, तो कल इसी अमर प्रेम की सौगंध देकर कक्का कहिन कि कुछ लिखो ''माघ पटा गा फागुन आयो' है। तो यही है कुछ उल्टा-पल्टा जो लिखे हैं। 

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