[ कविता / सुमित पांडेय ]
मैं आज कल नहीं लिख रहा हूं...
उड़ते हुए पक्षियों पर
बाग में खिलते फूलों पर
फरवरी के अलसाए दिनों पर
अपनी 10 महीने की चहकती बेटी पर
कोरोना में खाली हो गए उन घरों पर
जहां बाहर टंगे हैं 'टू लेट' के बोर्ड
जिन्हें अब भी इंतजार है,
विद्यार्थियों के लौट आने का।
मां पर, जो हर रोज करती है
मेरे फोन का इंतजार।
पसंदीदा लेखक उदय प्रकाश के
'अराजनीतिक स्टंट' पर।
-------
लिखना चाहता हूं... ढाई महीने से सड़क पर बैठे किसान पर
उनकी परेशानी, आंसू और आत्महत्या पर नहीं
वरन उनके हौसलों पर
वक्त को रोक देने वाले उनके फौलादी इरादों पर
सड़क पर गड़ी कीलें भी जिनकी दृढ़ता को नहीं डिगा सकीं
ऐसे टिकने वाले टिकैतों पर
उन पर जो किसानों के आंदोलन की गढ़ रहे हैं नई 'व्याख्याएं'
उन पर जो निश्चय करके आए हैं
लेकर आए हैं अपनी धरती मां की शपथ
अपनी पत्नी और बच्चों को देकर आए हैं दिलासा
कि आखिर में जीत हमारी ही होगी
क्योंकि उनकी विजय गाथाओं से भरा पड़ा है इतिहास !!
नोट : यह कविता पत्रकार मित्र सुमित पांडेय जी की वाल से साभार ली गई है।
0 Comments