मेरी आवारगी

एक कदम अपनी मिट्टी की ओर



   कक्का इस चित्र में खेत पर पीली सरसों के बीच लहलहा रहे हैं और वीडियो में ट्यूबवेल के पानी का पता लगा रहे हैं।  वीडियो यहां देखें :-

  



हमारे सार्थक प्रयास के वीडियो यहां देखें :-

मैं एक पत्रकार बाद में हूं। इसके पहले एक किसान-पुत्र और किसान हमेशा से हूं। किसान के उस दर्द को हमेशा महसूस किया है। आज इतवार की गांव यात्रा का मकसद एक किसान के खेत में बीते 15 साल से मरी पड़ी पानी की व्यवस्था को जिंदा करना था। Prem कक्का की मदद से इस काम को बखूबी अंजाम दिया गया। आज की मेहनत और उसका सुखद परिणाम इन तीन वीडियोज के बहाने यहां कहा जा रहा है।

बाकी आप किसान की उस खुशी का अंदाजा वीडियोज देखकर खुद ही लगा सकते हैं। वो बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसका एक डॉयलॉग  अब तक जेहन में बसा है कि "जैसी खुशी एक किसान को अपनी लहलहाती फसल देखकर मिलती है, वही खुशी बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर प्राप्त होती है।" इस डॉयलॉग के शुरुआती चंद शब्द ही मेरे अंदर गहरे धंसे हैं कि "किसान को अपनी लहलहाती फसल देखकर खुशी होती है"। मैं बस इसे जीने की फिराक में हूँ।  

मेरा मानना है कि जब उम्मीद जिंदा होती है, तो आदमी जी उठता है। घर-गांव का रुख तो मैंने लगभग दो साल पहले ही कर लिया था। लेकिन अब ये समय और मेरा उठा हुआ कदम फिर अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए है। अगले वर्ष से खेतों में खड़ी फसल को देखकर मिलने वाले सुख को पाने के लिए मैं लालायित हूं। खेत में फूली पीली सरसों को देखकर जो खुशी मिलती है, वो अलहदा होती है। मैं बीते पन्द्रह साल से उस खुशी से वंचित हूँ।

इसीलिए अब जब डेढ़ दशक की पत्रकारिता के बाद घर-गांव और खेतों की ओर लौटा हूं, तो लगता है कि बहुत देर कर दी है। इन बीते 15 सालों में ठेके पर खेत देकर अपनी मिट्टी के साथ बड़ा अन्याय किया है। आज ये देखकर बेहद अफसोस होता है कि गांव यहां बाहें फैलाकर मेरा इंतजार कर रहा था, लेकिन मैं शहर के मायाजाल में उलझा पड़ा था। 

अपने बडे़-सयाने कह गए हैं ना कि ‘‘देर आए दुरुस्त आए’’। बस इसीलिए अपन भी कुछ उधार की सांसें लेने अपनी मिट्टी की ओर लौट आए हैं। अब फिर गांव की शरण में हैं। यहां भी उम्मीद की फसलें लहलहाएंगी, जिंदगी यहीं इन्हीें खेतों पर अपने गीत बुनेगी। यहीं किसी तराने से फिर कोई तार छेड़ेंगे। ये माना कि गर्दिशें बहुत हैं, लेकिन यकीन मानिये अपने अंदर के किसान को जिंदा रखने के लिए खेत में फूली इस सरसों से ज्यादा कुछ जरूरी नहीं है। फिलवक्त के लिए विदा है। आप इन वीडियोज के बहाने खेत को महसूस करिये। गांव को अपने अंदर जिंदा रखिये। बाहर बैठकर अपनी मिट्टी को याद रखिये। कोशिश करिये कि खेत में ये फूलती सरसों यूं ही लहलहाती रहे। 

-जय जवान-जय किसान। 
-जिंदगी जिंदाबाद। 
-गांव आबाद रहें। 

-31 जनवरी 2021

© दीपक गौतम 

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