मेरी आवारगी

भोपाल यारानों के लिए शुक्रिया मेरी जान

 

भोपाल और भाई

ये दिल्ली है मेरी जान


आज 27 सेप्टेंबर को दो अजीजों Rohit Mishra और Brijesh Singh का जन्म दिन है। कभी यूँ भी होता था कि बर्थडे पर 'केक काटो-पोतो' की रस्म अदायगी जन्म दिन शुरू होने के पहले रात को ही कर ली जाती थी। जमघट जुड़ती थी और यारानों की महफ़िल जवां होती थी। भोपाल के गली-कूचों से होते हुए बड़ी झील किनारे मंद हवा के झोंकों के साथ रातभर बतकही होती थी। तब ना ही समय कम होने का रोना था और न फुर्सत की कमी थी। तभी तो भोर की लालिमा दिखने तक आदमी भोपाल की सड़कें नापता रहता था। 


अब बढ़ती जिम्मेदारियों और जिंदगी में पल-पल बदलती भूमिकाओं ने इस कदर जकड़ लिया है कि कभी एक दिन पहले देर रात लिखे जाने वाले ऐसे बर्थ डे नोट जन्म दिन खत्म होने पर लिखे जा रहे हैं। कल देर रात भारी उत्साह में लिख ही रहा था कि कब आंख लग गई और सारा लिखा उड़ गया पता ही नहीं चला। खैर बात भोपाल की हो रही थी, तो बता दूं कि जिंदगी की किताब के सुनहरे पन्नों का कभी जिक्र करना हो, तो भोपाल को याद किये बिना वो सम्भव नहीं है। 


मैं हमेशा लिखता रहा हूँ कि भोपाल मेरी जान तुमसे जितनी बेपनाह मोहब्बत मिली है, उतनी तो प्रेमिकाओं से नहीं मिला करती। तुमने कभी न खत्म होने वाली यारियां दीं। मुट्ठी भर ही सही कुछ ऐसे रिश्ते दिए, जो जीवन की असल पूंजी हैं।  


रोहित भाई से मिलना राज एक्सप्रेस में काम करते हुए हुआ था। न जाने कब उन्होंने एक गार्जियन, दोस्त, बड़े भाई की जगह ले ली पता ही नहीं चला। मुझे नहीं पता तुमसे मिलना फिर कब हो सकेगा, लेकिन बस इतना कहूंगा कि अब तसल्ली से मिलूंगा। तुमने जिंदगी को पढ़ना और गुनना सिखाया है। जिंदगी में एक वक्त आता है, जब आदमी नाउम्मीद हो जाता है, उस वक्त अगर कोई कंधा था, जिस पर सिर रखकर फफक-फफक कर बिना किसी परवाह के रो सका, तो वो तुम्हारा कंधा था भाई। बीते उस हर एक लम्हे के लिए शुक्रिया। जो थोड़ी बहुत कागद करना सीख पाया और साहित्य में रुचि बनी, वो भी तुम्हारी देन है। तुम्हारे जितना बेहतर लिखने में तो शायद जीवन बीत जाय। लेकिन जब भी कुछ पढ़ने लायक लिख सका, तो तुम्हें मायूस नहीं करूंगा। तुम्हें जन्म दिन की अनंत शुभकामनाएं भाई। और गिले-शिकवों के लिए आज का दिन मुकर्रर नहीं किया जा सकता है। इसलिए वो तो अब मिलने पर ही होगा। क्योंकि रिश्तों की किस्तें इतनी आसानी से नहीं भरी जा सकती हैं। गर ये पढ़ रहे हो, तो फिर अपने सम्पादक जी को बधाई दे देना। 


आखिरकार हंसी-ठिठोली करते-करते हम लोग जो कहते रहते थे। वो आज दस साल बाद सच हो गया है। मुझे याद है कि एमसीयू के सामने बगिया में चाचा की चाय हो, केरवा डैम का किनारा या फिर रचना नगर का वो दस बाई दस का दड़बा (हॉस्टल का रूम)।  चाय की प्याली के साथ चर्चा करते-करते भाई कब तहलका की कवर स्टोरी के आईडियाज पर डिस्कस कर लेता था, पता ही नहीं चलता था। ये भी खूब कि अगले अंक में उसी आईडिया पर कवर स्टोरी भी हो जाया करती थी। हम लोग अक्सर कहते थे कि ये दस बाई दस का दड़बा भविष्य के सम्पादक का आज का ठिकाना है। रचना नगर के उस हॉस्टल के सामने लगे झूले पर गुजरा वक्त अब भी आंखों के सामने से डोल जाता है। तुम्हें यहां तक पहुंचते देखना बहुत सुखद है यार। आखिरकार तुमने कर दिखाया। तहलका से The Wire Hindi तक की इस यात्रा का गवाह रहा हूँ। यूँ ही ग़दर काटे रहो सम्पादक जी। तुम्हें जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएं। 


तुमसे मिला स्नेह और अपार प्रेम ही है, जिसने जिंदगी के एक मोड़ पर मुझे भोपाल  छोड़ने का हौसला दिया था। मुझे अब भी याद आता है कि उन दिनों बात करते-करते हमारे मोबाइल भट्टी की तरह तपने लगते थे।  जब नई जिम्मेदारी के लिए तुम्हें तहलका ने चंडीगढ़ भेजा था। बहुत कठिन था रेल्वे स्टेशन पर तुम्हारी रुखसती का वो पल। भोपाल और चंडीगढ़ में किलोमीटरों का फासला था, लेकिन हमारे दिलों के तार  इन भौगोलिक दूरियों से हमेशा परे रहे। मैं जानता हूँ कि तुम्हें खुद के बारे में लिखा-पढ़ा जाना पसंद नहीं है। लेकिन तुम जानते हो कि मैं कभी-कभी बह पड़ता हूँ। इसलिए माफ करना। 


जिंदगी के हर मोड़ पर भोपाल का शुक्रिया अदा करता रहा हूँ। आज एक बार फिर तुम दोनों के जन्म दिन के बहाने ही सही अपने जानेमन शहर को याद कर रहा हूँ। क्योंकि यारियों को पैदा करने वाले मोहब्बत के बीज और खाद-पानी के बिना हरियाने वाले यारानों को जन्म देने वाली मिट्टी तो उसी शहर की है। तुम दोनों को एक बार फिर जन्म दिवस की ट्रक भरकर बधाई। शुक्रिया भोपाल कि तुमने इश्क और अश्क दोनों से लबरेज़ किया। 


अंत में बस यही कहना चाहता हूँ कि जल्द मिलेंगे। क्योंकि भोपाल से लौटने और कोरोना के बाद अंदर का ऑक्सीजन खत्म हो रहा है। और तुम दोनों जानते हो कि वो तो अपन को सिर्फ भोपाल की फ़िजा में ही मिलता है। और इस समय दिल ''एक मुलाकात जरूरी है...'' टाइप भी फील कर रहा है, तो बहाने खोजो और फिर मिलते हैं भाईलोग। मुझे यारों की तलब लगी है। 


- तुम्हारा दोस्त 


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