मेरी आवारगी

तुम थी तो...

तुम थी तो...
**********
याद नहीं कर रहा हूं क्योंकि तुम भूलने वाला सुकून ही नहीं हो मोहतरम। अचानक कुछ ताजा और साझा हो गया कहीं अन्दर से निकलकर। इस दिल्ली यात्रा में सुबह दांत चमकाने को टूथब्रेश उठाया ही था, लेकिन मजाल की टूथपेस्ट मुझे बैग में मिल पाता। अचानक पुरानी यात्रा का दृश्य ताजा हो गया, जब बस मैं कहता गया और तुम सब हाजिर करतीं गईं। लव यू मेरी जान। हंसती रहो जहां भी रहो। 

कसम से तुम्हारे जैसा व्यवस्था पसंद नहीं देखा या ये हो सकता है कि मेरे जितना लापरवाह दूसरा जगत में नहीं। ससुरा दिल्ली जाने के लिए एक दिन पहले से सारी पैकिंग की थी, फिर भी कुछ न कुछ रह ही गया। एक आप की पैकिंग और आप। बस आपका ही खयाल रखना होता था, बाकी तो सारी व्यवस्थाएं खुद बखुद हो जाती थीं। 

चिंता मत करो अब दूर-दूर तक हम एक-दूसरे की जद और हद में नहीं हैं, न शायद होंगे। अब इतनी जुर्रत मैं नहीं कर पाऊंगा।

तुम्हारे न रहने पर जरा-जरा सा योजना पसंद और कम लापरवाह हो गया हूं। अब तुम्हारे जितना कोई टोंकने वाला नहीं न। वो बार-बार टोंकना और डांटना इन्ना सही लगता था कि कभी सुधरने का जी  नहीं किया। अब हो नहीं तो सारी अकड़ खुद से कब तक करें, सब सुधर रहा है आवारगी के साथ।
-19 जनवरी 2014
© दीपक गौतम  

#आवाराकीडायरी #aawarakiidiary

Post a Comment

0 Comments