पहलगाम पर मीडिया की प्रलय
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#विजयमनोहरतिवारी
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न्यूज एंकरों और वॉइस ओवर की आवाजों के निरंतर कर्कश प्रलाप ने प्रमाणित कर दिया है कि भारत सरकार चाहे तो अपने अस्त्र-शस्त्र सहित समस्त लड़ाकू विमानों को एक लॉकर में किसी अगले अवसर तक सुरक्षित रखते हुए मीडिया के इन महान योद्धाओं को एलओसी पर भेज दे। ये अपने प्रलयंकारी स्वरों से ही इस्लामी जिहाद का हमेशा के लिए पैकप करा देंगे। मरकज सुभानअल्लाह में अपने दस परिजनों को खुदागंज भेज चुका अल्लाह का बंदा मौलाना मसूद अजहर इनके ऊंचे आसमानी आलाप सुनकर न खुदकुशी कर ले तो देखिएगा…
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पहलगाम घटते ही मीडिया का मौसम शबाब पर आ गया। खासकर टीवी चैनल। जैसे एक खास दिन खास जगह पर हाट बाजार में दुकानें सजने लगती हैं। खबरों के हाट में चैनलों के खोमचे पहलगाम के कैसे-कैसे प्रोडक्ट और बाइ प्रोडक्ट लेकर कितनी तैयारी से उतर गए।
वे तब से अपने स्क्रीन पर जितने बम और विमान उड़ा चुके हैं, उसे देखते हुए अब तक पाकिस्तान का ही नामोनिशान नहीं मिट जाना था बल्कि बाकी के पचास मुस्लिम मुल्क भी गाजा पट्टी जैसे दिखाई देने चाहिए थे। कवरेज के नाम पर इसे बचपना कहना मूर्खतापूर्ण है। स्वतंत्र भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लैस मीडिया का मतलब ही है, जिसे जैसी जहाँ चाहे पतंग उड़ानी है, पूरी ताकत से उड़ाए! मैं इस राय से कतई सहमत नहीं हूं कि भारत का मीडिया बिना ब्रेक की खतरनाक ड्राइव पर है।
पहलगाम भारत की आत्मा पर कायरतापूर्ण आक्रमण था, जिसका उत्तर अत्यंत सधे हुए सुनियोजित ढंग से भारत ने पूरी तैयारी और संतुलन के साथ समय लेकर दे दिया। "ऑपरेशन सिंदूर' का नामकरण भी ह्दयस्पर्शी था। इस एक्शन ने भारत की तैयारी के हर अकल्पनीय आयाम को छुआ। पाकिस्तान में इस्लामी आंतक के फलते-फूलते अड्डों को निशाना बनाना और दो महिला फौजी अफसरों द्वारा दुनिया को इस बारे में अवगत कराने की रणनीति भी इसी बुद्धिमत्तापूर्ण आक्रामक रणनीति का हिस्सा थी। सरकार और सैन्यबलों के स्तर पर कुछ भी शीघ्रतापूर्ण आवेश में न कहा गया, न किया गया। किसी ने कोई ढींगें नहीं हाँकीं, बड़बोलापन नहीं दिखाया। वे चुपचाप अपनी तैयारी करते रहे और एक रात करके दिखा दिया। वह एक शुरुआत थी।
किंतु तब से लेकर अब तक भारतीय टीवी चैनलों के पास संसार में कोई और दूसरी खबर नहीं थी। उनके पास संपूर्ण ब्राह्मंड में बताने लायक कुछ भी नहीं बचा था। राष्ट्रभक्ति का यह समाचार संस्करण संग्रहणीय है। पहलगाम के तुरंत बाद स्क्रीन पर आग, धुआं और धमाकों में पाकिस्तान स्वाहा कर दिया गया। अपने अक्ल के घोड़े धरती और आसमान में उड़ाते हुए हमारे महाप्रतापी चैनल बताते रहे कि भारत क्या-क्या कर सकता है, कहाँ-कहाँ से कर सकता है, कैसे और किन साधनों से कर सकता है।
चैनलों पर चल रहे इस काल्पनिक एक्शन में जितनी आग बरपाई गई, उससे पाकिस्तान के नक्शे पर केवल राख ही बचनी थी। पत्रकारों से अधिक ग्राफिक्स डिजाइनरों ने अब तक अदृश्य अपनी प्रतिभा की दम पर अपनी सूक्ष्म कारीगरी दिखाई। पता नहीं कहाँ की उड़ानों के पुराने फुटेज, पता नहीं कहाँ की आग और कहाँ के धुएँ को वे कंटेनरों में भर-भरकर लाए और सैटेलाइटों की कमर तोड़ दी ताकि वे करोड़ों स्क्रीनों तक लाइव कहर बरपा दें।
चैनलों के न्यूजरूम में होने वाली प्लानिंग की मॉर्निंग और इवनिंग मीटिंग और इनकी हर दिन की रिव्यू की अंदरुनी जानकारी अगर कोई निष्ठावान पत्रकार दे पाए तो ज्ञात होगा कि पत्रकारिता के ये परम धन्य महावीर चक्रधारी अपने तकनीकी विशेषज्ञों के साथ किन-किन स्पेशल इफेक्ट्स के ओवरडोज की खुराक किन शब्दों में तय कर रहे थे। इन अनुभवों पर एक स्मारिका का प्रकाशन सदियों के लिए एक उपयोगी दस्तावेज बनेगा। इनके शौर्यपूर्ण अखंड समाचार प्रदर्शनों से प्रतीत होता है कि इन्हें न्यूज चैनलों से उठाकर फिल्म प्रोडक्शन में प्रमोट कर दिया जाना चाहिए, जहाँ इनकी प्रतिभा का नेक्स्ट लेवल एक्शन और वार मूवियों में दिखाई दे।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड, प्रेस काउंसिल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संगठनों को पत्रकारों के प्राण फूंकने वाले ऐसे हाहाकारी कवरेज पर नेशनल लेवल पर "शौर्य समाचार चक्र' या "महावीर खबर पदक' जैसे चमचमाते अवार्ड सेरेमनी दिल्ली के भारत मंडपम परिसर में आयोजित करने चाहिए। प्रायोजकों में कोई न कोई साबुन, शैम्पू, कंघा, तेल, सॉफ्ट ड्रिंक्स, मसाले, चाय, कॉफी के उदार निर्माता मिल ही जाएंगे। जेब से कुछ नहीं जाना है। चारों ओर से चाँदी है।
सिनेमाई सदी के महानायकों और बोली पर उठने वाले उनके जुड़वां भाई यानी खिलाड़ियों के हाथों ये पदक बटवाए जा सकते। सिनेमा और स्पोर्ट्स की सेलिब्रिटी चैनलों के सेलिब्रिटी एंकर-एंकरियों के सिर पर सोने की पॉलिश वाले ताज पहनाएँ। मीडिया संस्थानों के विद्यार्थियों के लिए कितना प्रेरक और मनोरम समारोह होगा। भविष्य के वीरतापूर्ण कवरेजों के लिए पत्रकारों की भावी पीढ़ी तैयार करना भी बुढ़ाते अर्थात् अनुभवसंपन्न एंकर-एंकरियों का ही दायित्व है। आज के मीडिया विद्यार्थी माखनलाल चतुर्वेदी या गणेशशंकर विद्यार्थी के शुद्ध सात्विक आदर्श पढ़कर समाचारों में ऐसा शौर्य बल कहाँ से ला सकते हैं? आज के आदर्श ये हैं।
न्यूज एंकरों और वॉइस ओवर की आवाजों के निरंतर कर्कश प्रलाप ने प्रमाणित कर दिया है कि भारत सरकार चाहे तो अपने अस्त्र-शस्त्र सहित समस्त लड़ाकू विमानों को एक लॉकर में किसी अगले अवसर तक सुरक्षित रखते हुए मीडिया के इन महान योद्धाओं को एलओसी पर भेज दे। ये अपने प्रलयंकारी स्वरों से ही इस्लामी जिहाद का हमेशा के लिए पैकप करा देंगे। मरकज सुभानअल्लाह में अपने दस परिजनों को खुदागंज भेज चुका अल्लाह का बंदा मसूद अजहर इनके ऊंचे आसमानी आलाप सुनकर न खुदकुशी कर ले तो देखिएगा।
हो सकता है शहबाज शरीफ और आसिफ मुनीर भी अपना बचा-खुचा कैश बटोरकर दुबई या अमेरिका की अपनी आलीशान रिहाइशों की तरफ दौड़ लगाते नजर आएं। अपने अंडों-बच्चों को तो वे पहले ही खवातीनों सहित खुदा हाफिज कहकर रवाना कर चुके हैं। अपनों के ही हाथों पहले से बरबाद एक फटेहाल इस्लामी मुल्क पर भारत बेकार ही अपना असलहा बरबाद कर रहा है। मीडिया की यह फौज और किस मौके के लिए खुद को तराश रही थी। हर चैनल से दस-दस सूरमा और सूरमी नोएडा की फिल्म सिटी से उठाकर मोर्चे पर लगा दिए जाएँ। उन्होंने अपनी प्रतिभा से यह साबित कर दिया है कि वे इस अवसर के सर्वथा और निर्विवाद योग्य हैं।
वो दुनिया कैसी थी जब फिल्में नहीं थीं, टीवी नहीं था, चैनल नहीं थे, न्यूज चैनल नहीं थे। अखबार भले ही थे। सुबह आते थे और लोग मजे से पढ़ते थे। चर्चा करते थे। अपनी राय लिख भेजते थे। वो भी छप जाया करती थी। मीडिया के अतिरेक ने जीवन में क्या नया और अच्छा जोड़ा है, यह शोध संस्थानों के लिए शोध का विषय है। मीडिया के शोधार्थी देखें कि समाचारों की इस समृद्धि ने हमारा जीवन कितना बेहतर बनाया है और इनके बिना हम कितने अधूरे थे, शांत और चौबीसों घंटे समाचारों की बाढ़ से सुरक्षित संसार कितना दरिद्र था। स्क्रीन पर दर्शनीय न्यूज एंकरों और वॉयस ओवर में उबलती आवाजों के बिना यह जीवन और जगत लाखों वर्षों तक कितना दुर्भाग्यशाली रहा। इनका ही प्रताप है कि हर राजनीतिक दलों को अपने यहाँ प्रवक्ताओं की पूरी फौज उतारनी पड़ी ताकि इनके प्राइम टाइम में वह स्क्रीन पर नमूदार हो सके और चैनलों का उदरपोषण चलता रहे।
प्रस्तुत पहलगाम प्रसंग में चैनलों की चीख पुकार ने विश्लेषण के बवंडरों की अपार ऊंचाइयों पर जाकर जिस उच्च तापमान को छू लिया है, वह मीडिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना है। मीडिया के पाठ्यक्रमों में इनके विविध आयाम जुड़ने चाहिए। पीएचडी होनी चाहिए।
हम गर्व से कहते हैं कि भारत की सेना की वीरता और तैयारी के आगे कोई दुश्मन टिक नहीं सकता। जबकि हमें कहना चाहिए कि सेना की बारी तो बाद में आएगी, हमारे सर्वगुण संपन्न न्यूज एंकरों और एंकरियों के आगे दुश्मन तो क्या चीज है, दुश्मन का बाप भी कहीं टिक नहीं सकता।
मोर्चे पर अवसर पाकर जैसे ही वे अपना वीरतापूर्ण कवरेज शुरू करेंगे, एक साथ अनेक मिसाइलों के हमले का कयामत जैसा तजुर्बान आतंकी मरकजों में हो जाएगा और सरहद पार के सारे आतंकी, फौजी और सियासी लीडरान, जो कि सब एक ही हैं, एक ही स्वर में चीत्कार कर उठेंगे-"या अल्लाह, इस महामारी से बचा या धरती से उठा। इस दोजख से तो वह जन्नत भली, जो कब्र में जाने के बाद मिलने की गारंटी दी गई है!'
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(पोस्ट साभार : विजय मनोहर सर की फेसबुक वाल से साभार)
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