मेरी आवारगी

हर रूह पे मेरा कब्जा हो जाए...!

 धूप में ठंडी छांव
महसूस करके तो देखो।
जिन्दगी बहुत खूबसूरत है 
जरा नजदीक से देखो।
कभी शबनम भी जला देती है, 
तो कभी आग मजा देती है।
ये जिन्दगी है दोस्त 
एक पल में हंसा देती है , 
तो कभी आँसुओं की झड़ी लगा देती है।
बहारों मे भी पतझड़ के वीराने देखे हैं यहां, 
समा के लिए जलते परवाने देखे हैं यहां।
अफ़सोस न कर कि हर लम्हा रुला देता है, 
वही तो है जो गम मे भी जीना सिखा देता है।
किसी ने जन्नत को देखा नहीयहां, 
फिर क्यों तू जहन्नुम की सोच से डरता है। 
हर पल को गुजार दे यूँ साकी 
कि वीराने में भी बहार आ जाए।
बस याद रह जाए तेरा जीना इस जहाँ को , 
क्या पता तुझे देखकर
किसी उदास चेहरे पे मुस्कान छा जाए।
कोई मयखाने में गम बेचकर खुशी तलाशता है , 
जो अलमस्त फकीर है जिन्दगी का 
वो सिर्फ़ मुस्कान बाटता है।
सागर की लहरों सी मौजें उठती हैं, 
तराने भी अफसाने हो जाते हैं।
लहर उठती है सब बहाकर साथ ले जाती है ,
अपने भी यहाँ बेगाने हो जाते हैं।
इस लहर की ताल को महसूस तो कर, 
फिर देख जिन्दगी के हर तराने पे नाम तेरा है।
और फसाने भी कैसे तेरे अफसाने हो जाते हैं।
महज जीने के लिए अगर आए हो सफर में, 
तो जाइज नहीं है काफिर जीना तुम्हारा...
जेहन में इतना सुकून तो हो उस आखिरी पल, 
तेरी मौत बस मौत नहीं...अदद याराना हो जाए।
दम जब भी निकले रहम निकले, 
कम से कम चार आँसू छलकें नम से..
समां जहान का इसक में मेरे, 
कुछ यूँ आशिकाना हो जाए। 
बटोरी है जो गर्द मोहब्बत में हमने,
'आवारा' छिटके जो फिजा में राख अपनी...
हर जबां पे मेरा ही चर्चा हो जाए, 
मौला आवारगी मुकम्मल हो ऐसी कि
हर रूह पर बस मेरा ही मेरा  कब्जा हो जाए।

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4 Comments

वाह !! बहुत बढिया ...
Udan Tashtari said…
वाह!! क्या बात है! बढ़िया प्रयास.
तुम्हारी यही लिखने की शैली मुझे मजबूर कर देती है तुम्हारे ब्लॉग पर आने के लिए....

बहुत बढ़िया दीपक :-)