जब कोई नहीं होता पास
तुम होते हो,
तुम्हीं में जिंदा हैं,
तुम्हीं ने पाला है।
आवारगी के सरताज-
हे मेरे शब्दों
मेरा संसार बनो,
घर-बार बनो
मेरा जिस्म मढ़ो,
मेरी रूह गढ़ो,
मेरे पंखों की रफ्तार बनो।
तुम ही फकत मेरे रहे हो सदा,
जो गूंजे धरा-गगन तक
बस वही हुंकार बनो।
जले जब मिट्टी देह की,
जो उठे हर एक रूह से
धुएं का वो गुबार बनो
मेरी आवाज सुनो...
अभिमान बनो....
निकलो कलम से मेरी
फिर अलहदा कोई कलाम बनो।
तुम्हीं हमदर्द और हमराज भी तुम...
आवाज भी तुम...साज भी तुम..
जो गूंजता है सुबह-शाम जेहन में
उसका शंखनाद करो।
अपने लिए गढ़ा बहुत,
गैरों के लिए भी शिल्पकार बनो....
वैराग तजो...आधार सधो,
बस आगाज नहीं...मेरा अंजाम बनो।
जो दबे हैं राख के नीचे,
उन शोलों की फुंकार बनो....
कब तलक होगा पानी-पानी ?
जो सुकून दे दहकती रूहों को "आवारा"
वही धधकता अंगार बनो....!!
अभिमान तजो...अंगीकार करो..
हे शब्दों मेरा आधार बनो !!
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