छाया ; शकील खान |
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लड़का पूरे 28 बरस का हो गया है। आवारगी में अच्छा-भला जी रहा है, लेकिन घर वालों से देखा नहीं जाता है। अब वो भी कहने लगे हैं कि आवारगी छोड़ दे 'आवारा'। शादी करवा रहे हैं तो फिर से तीन रोज इंदौर, झांसी, ओरछा में बैहाएंगे और घरवालों के पसंद की कुछ सुन्दरियों के दर्शन होंगे। अब उन्हें कौन समझाए कि बड़ी मुश्किल से मिला है आवारगी का दयार इसे कैसे छोड़ दूं बेमतल सी शादी नाम की फर्जी संस्था के लिए। कमबख्त अब इश्क भी तो नहीं होता फिर से कि कोई कजरारी नयनों वाली हम पर अपना दिल हार दे और कुबूल ले बिना बदले मुझे कि ठीक हो जैसे भी हो।
जांय दो गुरु 7 फरवरी वही मुबारक दिन है जब धरा का भार बढ़ाने और आवारगी को बुलंद करने पहली सांस ली थी हमने। इस जन्मदिन पर सबसे अच्छा है कि मेरे मासूक की सौंत (सिगरेट) साथ न होगी। ये और है कि इससे अपना तलाक जब हुआ तो वो नहीं है पास हमारे। चें-चें करके दिमाग का लप्पूझन्ना कर दिया है भाई लोगों ने शादी के लिए। मैंने भी शर्त रख दी कि आवारगी पर पहरा बिठा रहे हो काफिरों तैयार रहना अगर मेरे मजहब से खिलवाड़ हुआ तो सब काट कर खुद से अलग कर दूंगा हमेशा की तरह। मेरे जैसे अकडू की जिद पर शशर्त सहमति दे दी है घरवालों ने...क्या करें बेचारे चाहते बहुत हैं मुझे, घर में सबसे छोटा हूं न।
लड़का पूरे 28 बरस का हो गया है। आवारगी में अच्छा-भला जी रहा है, लेकिन घर वालों से देखा नहीं जाता है। अब वो भी कहने लगे हैं कि आवारगी छोड़ दे 'आवारा'। शादी करवा रहे हैं तो फिर से तीन रोज इंदौर, झांसी, ओरछा में बैहाएंगे और घरवालों के पसंद की कुछ सुन्दरियों के दर्शन होंगे। अब उन्हें कौन समझाए कि बड़ी मुश्किल से मिला है आवारगी का दयार इसे कैसे छोड़ दूं बेमतल सी शादी नाम की फर्जी संस्था के लिए। कमबख्त अब इश्क भी तो नहीं होता फिर से कि कोई कजरारी नयनों वाली हम पर अपना दिल हार दे और कुबूल ले बिना बदले मुझे कि ठीक हो जैसे भी हो।
जांय दो गुरु 7 फरवरी वही मुबारक दिन है जब धरा का भार बढ़ाने और आवारगी को बुलंद करने पहली सांस ली थी हमने। इस जन्मदिन पर सबसे अच्छा है कि मेरे मासूक की सौंत (सिगरेट) साथ न होगी। ये और है कि इससे अपना तलाक जब हुआ तो वो नहीं है पास हमारे। चें-चें करके दिमाग का लप्पूझन्ना कर दिया है भाई लोगों ने शादी के लिए। मैंने भी शर्त रख दी कि आवारगी पर पहरा बिठा रहे हो काफिरों तैयार रहना अगर मेरे मजहब से खिलवाड़ हुआ तो सब काट कर खुद से अलग कर दूंगा हमेशा की तरह। मेरे जैसे अकडू की जिद पर शशर्त सहमति दे दी है घरवालों ने...क्या करें बेचारे चाहते बहुत हैं मुझे, घर में सबसे छोटा हूं न।
कुल जमा इतना है कि जारी हो गया है फुलौरी के लिये चाची ढूंढने का सफर। दिल्ली में आठ रोज खोजा-बीना अपने हिसाब की कौनो छोकरी नहीं मिली। अब फ़क्त मोहब्बत ही की है जिंदगी में गुरु और कुछ नहीं, तो फिर होने से रही। नींद तो पहले ही गिरवी है उन एक जोड़ा आंखों में, रूह का सुकून भी उसी हंसी में घॊल आया हूं। अब सोचता हूं कि जिस निगाह में वो साफ़ नजर आ जाएगी उसी के रहमोकरम पर आवारगी बुलंद करेंगे।
न चाहते हुए हां की है शादी के फर्जीवाड़े के लिए तो बेमन से घरवालों की पसंद की कुछ सुन्दरियों से मुलाकातें हो रही हैं। दिल वालों की दिल्ली में समझ में कोई समझ नहीं आई, मुंबई में भी बात नहीं जमी। अब देखो तीन रोज में ये तीन नमूने अपन को कैसे मिलेंगे। अगर अपनी कैमिस्ट्री, बायोलाजी और मैथ सब मिल गया तो विचार करेंगे, मगर कसम खुदा कि अबकी शादी बाद ही अनमना सा प्यार करेंगे।
कौनो वैलेंटाइन संत रहे हैं गुरबते जहान में उनका भी प्रेम महोत्सव आ रहा है ता भैया घर वाले भी हमरे थक रहे हैं और हम भी ई छांटो-बीनो टाइप के चक्कर से पक गए हैं। किसी लड़की को यहां इस आभासी दुनिया में हम समझ आ जाएं तो प्रेम का नहीं शादी का निमंत्रण दे सकती है, जाहिर सी बात है कुछ हमरा भी टाइप है तो सुन लीजिए पात्रता की शर्तें-
टमाटर क खेत में अपन/ छाया ; शकील खान |
पढ़ी-लिखी हो न हो जिंदगी की पाढ़शाला में पहला दर्जा पास हो। खुद से बेतहाशा प्यार हो जिसे। हूर नहीं चाहिए लेकिन मामला मुकाबले का होना चाहिए लड़का भी कमजोर नहीं है। कागजी दौलत की परवाह कभी की नहीं अपन ने तो जो दिल से अमीर हो और जिसकी आंखों में मुझे मेरी जान नजर आ जाए। स्वागत है उसका आवारगी के हरम में।
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