मेरी आवारगी

अपनी छोटी कविता 'मैं शराबी'

मैं और रोहित भाई 


जो खत्म हो जाये हाथ छूटने के बाद, सिमट जाये महज साथ छूटने के साथ।
वो इश्क कहां आवारा मयकसी ही हुई, उतर गई हो जैसे शराब जाम दो जाम गटकने के बाद।
यहां बुलंद होती हैं बोतलें नशा जाता नहीं साकिया आखिरी सांस के भी साथ।
झूमते देखे हैं लोग अक्सर मयकदे-इश्क में, खाली पैमाना लवों से चूमने के बाद।
कहो तो कहां अता होगा सुकूं इतना, खाली पैमाने में भी 'आवारा' यहां बोतलों शराब।
एक घूंट ही काफी है काफिर जीभर के झूमने को इसमें नशा बेहिसाब ... हाँ नशा बेहिसाब।


- 29 मार्च 2014
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal


(कुछ-कुछ कविता सा)

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