मेरी आवारगी

प्रेम की परिभाषा नहीं पढ़ी मैंने

प्रेम अनंत है














प्रेम की परिभाषा नहीं पढ़ी मैंने
तुम्हारी आँखों से उसे महसूसा है
जो शाश्वत है बस उसी में जिया हूँ
देह के राग से वैराग ही उपजा मेरा
आत्मा के अंतस में समेटता रहा
प्रेम अक्षरों में सिमटा कलाम नहीं
रगों में बहते हुए रक्त का राग है

तुझे खोकर ही तो पाया खुद को
हमारे सम्बन्ध का अवशेष बचा है
यकीन मानो ये अनमोल सी धरोहर
बस तुमसे उपजी है, तुम्हीं में लिप्त
प्रिये तुमसे विदा है, विदा है, विदा है

ये घड़ी स्थाई सा सुकून है जीवन का
किसी ठहराव की आकांक्षा से मुक्त हूँ
अब कोई शोर नहीं, क्षमा का भार है
तुम जब अहंकार से ऊपर उठोगे
शायद तब समर्पण की धार में बहो
जीवन का दर्शन और प्रेम का राग
तुम्हारी आँखों की पुतलियों में है
उनसे ओझल होकर जान पाया हूँ

एक संकल्प के प्रलाप में आधार था
समय का कुचक्र दोषी नहीं हो सकता
निराधार हैं तुमसे दूर होने के विचार
तुममें खो जाना मेरा दुश्साहस ही है
नहीं जीवन निरर्थक नहीं हो सकता
तुमसे इस तरह मिलना ही पसंद है
शब्दों के सहारे टहलता हूँ हर रोज
तुम्हारा राग ही मेरा जोग बन गया

फिर कभी मिलेंगे पिपासु होकर
किसी और दुनिया में तुम्हारे लिए
अभी नश्वरता जड़ कर गई है मुझे
प्रेम-पोथियों में जीवन झूमता है
मैंने कोई परिभाषा नहीं पढ़ी है

बस अलापता रहा हूँ जीभर तान
कभी बेसुरा नहीं हो सकता ये फाग
तुम्हारे सिवाय प्रेम का कोई राग नहीं
आवारा जीवन रूबाइयों में गुजरा है
तेरी जुल्फ की बदरी में सब पसरा है

मेरा कोई कलमा कोई कलाम नहीं 
जहाँ  गुदा तेरा खूबसूरत नाम नहीं 
कभी मिलोगे तो होगा सुकून जेहन को 
इश्क से अलहदा कोई मुकाम नहीं 
एक दिन यकीं  करेगा ये जमाना भी
आवारा यूँ ही तेरे प्यार में बदनाम नहीं

Post a Comment

0 Comments