तस्वीर साभार गूगल बाबा |
तुम सबसे खूबसूरत हो
तुम्हारे खयालों से भी ज्यादा
तुम ख्वाब हो हर आँख का
तुम नूर उस बेटे की निगाह का
तुममे पलते हैं बाप के सपने
तुम परी हो एक प्रेमी के लिए
और बहन, माँ-बेटी, दोस्त, प्रेमिका भी
तुम्हारे हर रूप में अगाध प्रेम है
तुमने ही जना है ये संसार अनोखा
तुममें छिपा प्रकृति का सार सलोना
तुझमें अपार ताकत का भंडार समाया
औरत तुमने गढ़ी नई परिभाषा हमेशा
तुम बंधी नहीं अब तक किन्हीं छंदों में
तुम सहज करुण और करुणा भी
दया-क्षमा और भाव का आधार भी
तुम रुदन भी और सबल-सार्थक
इंसानियत के गुण में अंदर-बाहर
निर्गुण सी सारे संसार का सार
तुम स्वाभिमान से अभिमान तक
रुदन से रुबाईयों तक समाई
हर मन में उतरी एक अक्स सा
किसी कवि की कल्पना तुमसे
जैसे लिखी गई वो अपढ़ किताब
जिसने खुद को गढ़ा बार-बार
पुरुष की अदम्य इच्छाओं के लिए
सतत झरती रही आंसू बनकर
नवजीवन से बसंत और पतझड़ तक
तुमने हुंकार भी भरी अहंकार भी बनी
तुम सिमटी हो कभी कलमों में
तुमसे ही हर कलाम की धार
तुम औजार और हथियार सी भारी
तुझमें कुदरत का सारा प्यार समाया
समय भी तुझमें सिमटता आया
नहीं तुम निर्बल कभी नहीं हो सकती
तेरी टंकार ने चट्टाने पिघलाई हैं
तेरे प्यार में पत्थर बोलना सीख गए
तू धरा का सबसे अनोखा उपहार है
हर अधिकार का हक़ तुमसे जना गया
जहाँ के किसी और अमन-सुकूँ को नहीं
यूँ खुलकर जीना तेरा अहंकार सही
बस मरना खुद के लि
तूने बदली है तस्वीर यहाँ अक्सर
बिना जी आए बदलना अधिकार नहीं
'आवारा' जो ओढ़ना ही चाहे हमेशा
कह देना वो समाज हमें स्वीकार नहीं
बेमकसद जीना और तड़प सपनों की
अब और बगावत मत कर खुद से
खुलकर कहना चुप मत रहना
नहीं-नहीं ये चुप्पी तेरी रूह का करार नहीं !!
तुम्हारे खयालों से भी ज्यादा
तुम ख्वाब हो हर आँख का
तुम नूर उस बेटे की निगाह का
तुममे पलते हैं बाप के सपने
तुम परी हो एक प्रेमी के लिए
और बहन, माँ-बेटी, दोस्त, प्रेमिका भी
तुम्हारे हर रूप में अगाध प्रेम है
तुमने ही जना है ये संसार अनोखा
तुममें छिपा प्रकृति का सार सलोना
तुझमें अपार ताकत का भंडार समाया
औरत तुमने गढ़ी नई परिभाषा हमेशा
तुम बंधी नहीं अब तक किन्हीं छंदों में
तुम सहज करुण और करुणा भी
दया-क्षमा और भाव का आधार भी
तुम रुदन भी और सबल-सार्थक
इंसानियत के गुण में अंदर-बाहर
निर्गुण सी सारे संसार का सार
तुम स्वाभिमान से अभिमान तक
रुदन से रुबाईयों तक समाई
हर मन में उतरी एक अक्स सा
किसी कवि की कल्पना तुमसे
जैसे लिखी गई वो अपढ़ किताब
जिसने खुद को गढ़ा बार-बार
पुरुष की अदम्य इच्छाओं के लिए
सतत झरती रही आंसू बनकर
नवजीवन से बसंत और पतझड़ तक
तुमने हुंकार भी भरी अहंकार भी बनी
तुम सिमटी हो कभी कलमों में
तुमसे ही हर कलाम की धार
तुम औजार और हथियार सी भारी
तुझमें कुदरत का सारा प्यार समाया
समय भी तुझमें सिमटता आया
नहीं तुम निर्बल कभी नहीं हो सकती
तेरी टंकार ने चट्टाने पिघलाई हैं
तेरे प्यार में पत्थर बोलना सीख गए
तू धरा का सबसे अनोखा उपहार है
हर अधिकार का हक़ तुमसे जना गया
जहाँ के किसी और अमन-सुकूँ को नहीं
यूँ खुलकर जीना तेरा अहंकार सही
बस मरना खुद के लि
तूने बदली है तस्वीर यहाँ अक्सर
बिना जी आए बदलना अधिकार नहीं
'आवारा' जो ओढ़ना ही चाहे हमेशा
कह देना वो समाज हमें स्वीकार नहीं
बेमकसद जीना और तड़प सपनों की
अब और बगावत मत कर खुद से
खुलकर कहना चुप मत रहना
नहीं-नहीं ये चुप्पी तेरी रूह का करार नहीं !!
- 4 मार्च 2014
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal
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