मेरी आवारगी

प्रेम आधार है जीवन का।

प्रेम का शास्वत संदेश देते हुए श्री श्री रविशंकर जी।  
औरंगाबाद में 3 मार्च 2014 को अपने अनुयाइयों के बीच गुरु जी।
हम आपसे प्रेम करते हैं। ठीक वैसा जैसा हवा में बहता है जीवन का राग, जो प्रकृति में समाया है, झरने से बहते पानी की कलकल में झरता स्वार्थहीन और आनंदमय, आसमान से टपकती हर बूंद से रिसता अमृत बूंद प्रेम। रंगों में बहते लहू और पल-पल अंदर जाती सांस का सा शरीर के पोर-पोर में घुला प्रेम, जिसके मिलने से जीवन अमर और न मिलने पर मनुष्यता मर जाती है। ऐसा ही प्रेम तुमसे हुआ है प्रिये। अब तुम्हारे बिना जीवन निष्प्राण है भद्रे। कठिनाइयाँ तो राह में आएंगी ही, क्योंकि हमने प्रेम किया है। बैर और द्वेष की राह बहुत आसान होती है मगर प्रेम का पथ कठिन है। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए प्रेम राग ही चाहिए। स्वयं और प्रेम पर आत्मविश्वास दृढ़ रखो दुनिया तुम्हारी दास होगी, तुम्हारा जीवन भी रसभरा होगा।
( कल 3 मार्च 2014 को श्री श्री रविशंकर जी से मिलकर उपजे विचार )

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