मेरी आवारगी

बस तुम्हारा हो रहा हूँ



सोच रहा हूँ कि कुछ गढ़ रहा हूँ
आंसुओं की तरह बह रहा हूँ 
वो कहते हैं जहान में और भी है 
बहुत कुछ कहने-सुनने को यार 
मैं हैरान हूँ खुदी को देखकर 
मोहतरम यूँ रफ्ता-रफ्ता 
बस अब तुम्हारा हो रहा हूँ 

जिंदगी कुछ और होती यकीनन 
तेरी साँसों का राज कौन समझेगा
गाहे-बगाहे रो-धोकर सिमटूंगा कभी 
अभी उस जिरह में बहक रहा हूँ 
तुझसे खुशबुएँ लेकर महक रहा हूँ
भूलकर दुनिया तेरी जुल्फों तले 
खुदगर्ज जीने की चाह सीख रहा हूँ

फिर कभी उदास होगी शाम तो सोचेंगे
किया क्या हमने जो इतना सोच रहा हूँ
तुम आबाद रहो तमन्ना हम रहे न रहें

आवारा किसी कसक में सिसक रहा हूँ
तेरी शोहबत में खोकर पाना सीख रहा हूँ 
साँसों से तुझे पीना सीख रहा हूँ,
हाँ मैं फिर से जीना सीख रहा हूँ...

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