औरंगाबाद की सड़कों पर बाइक में गुजरा एक लम्हा। छाया शकील खान |
( औरंगाबाद डायरी के पन्ने-नवंबर 2013)
बहारें तुमसे हैं तुम्हीं से हम रोशन हैं, उम्मीदें तुम्हारे आगोश में जवान होती हैं। जेहन तुम्हारे लिए जागता है और जिंदगी तुम्हें देखकर झूमती है। तुम हो तो हम हैं। प्रेम का पता नहीं मगर तुम्हें देखकर इन बेमानी से ढाई अक्षरों में एक बार फिर जो आस्था जगी है...उसमें सब खो गया है।
बहारें तुमसे हैं तुम्हीं से हम रोशन हैं, उम्मीदें तुम्हारे आगोश में जवान होती हैं। जेहन तुम्हारे लिए जागता है और जिंदगी तुम्हें देखकर झूमती है। तुम हो तो हम हैं। प्रेम का पता नहीं मगर तुम्हें देखकर इन बेमानी से ढाई अक्षरों में एक बार फिर जो आस्था जगी है...उसमें सब खो गया है।
पहली बार समंदर के किनारे तुम्हारे मुस्कराते हुए होंठ देखकर लगा था...मैं फिर मुस्करा सकता हूँ। मैंने जीवन के खालीपन में मन के सारे द्वार बंद कर दिए थे। तुम वो हो जिसने इन दरवाजों पर केवल दस्तक ही नहीं दी...दिल के घरोंदे में घर बना लिया है। मुंबई जाना जीवन की सबसे अद्भुत घटना थी, जिसमें तुम मिली हो। उस वक्त समन्दर का बहता पानी मेरी आत्मा को हिला रहा था। एक पल लगा कि तुम्हारा हाथ थामकर जोर से चिल्लाऊं और कह दूँ कि अब तुम ही हो..बस तुम ही हो। हवा में उड़ती तुम्हारी लटें आज तक लहराती हैं यादों में। तुम वो हसीन ख्वाब हो जो मैं हर रोज देखता हूँ...बार-बार हजार बार। न जाने कब वो सुबहें आएंगी जब हवा और रौशनी के छूने से पहले तुम्हारी छुअन मुझे छुए, सबसे पहले तुम ही महसूस हो। मैं उन आँखों में खोना चाहता हूँ, जिनमें डूबकर वो अनकहे ख्वाब पाले हैं।
मुझे कहना नहीं आता न ही जताना, मगर तुम समझती हो न कि मैं ऐसा ही हूँ। मैं हवा में तैरते प्रेम में आस्था ही नहीं रखता उसमें जीता भी हूँ। ये आधी उम्र के बाद तीसरी बार जवान हुआ प्रेम है इसमें किशोर प्रेमी-प्रेमिकाओं की तरह स्वपनलोक में खोने और बाहों में खोए रहने का समय नहीं होता है। यह जीवन के यथार्थ को स्वीकारते हुए प्रेम में जीने का वक्त है। यकीनन प्रेम एक सा ही होता है और है भी मगर आगे की राह बहुत कठिन है, क्योंकि हमने प्रेम किया है। तुम साथ रहोगी तो राहें और तमाम मुश्किलें आसानी से हंसते हुए पार होंगी। अपनी मुस्कान सलामत रखना, उसे देखकर जीने का मन करता है।
हम दोस्त सबसे पहले हैं...इसी एक रिश्ते ने हमें मिलाया है और ये सदैव याद रखना। जीवन कितनी भी तकलीफों भरा हो प्रेम में आस्था से पहले खुद पर भरोसा रखना। आज न जाने तुमसे इतना सब कहने का क्यों मन हो रहा है। जरा सी अजीबियत घर कर गई है। कभी-कभी लगता है वक्त नहीं है मेरे पास। बेहिसाब भागता रहा हूँ हर वक्त। मैं चाहता हूँ कि मैं और तुम बस हम होकर जिएं। कोई सम्पूर्ण नहीं होता मैं भी नहीं हूँ और जीवन भर पूर्णता के लिए बदलाव जारी रहेगा। इंसान बदलता रहता है हर उम्र में, यकीनन हम परस्पर परिवर्तन की स्वीकार्यता को साथ आगे बढ़ते रहेंगे।
मुझे यकीन है इस खालीपन को भरने और तुम्हारी आँख के बलबूते देखे सपनों को पूरा करने में तुम और मैं बस हम बनकर ही जियेंगे। तुम वो ख्वाब हो जिसे खुली आँखों से पूरे होशोहवाश में देखा है...वो ख्वाब हो जिसे मैं जीना चाहता हूँ...मुझे जीने दोगी न जिंदगी। तुम मेरे साथ चलोगी न...!!! मुझे तुमसे प्रेम हुआ है, जो निराधार नहीं है और ऐसा पहली बार हुआ है।
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