साभार गूगल |
अजीब कैफियत थी जेहन की कुछ जागता-सोता सा था. वो रात बहुत खुशनसीब थी, जब मेरी निगाह में तुम्हारा अक्स झलकता रहा. वो कजरी आंखों लगातार रिस रही थीं हमारे रिश्ते का भूत काजल के साथ बह रहा था. कुछ याद करके तुम झरते रहे और मैं भरोसे के लत्ते से हमारा अतीत पोंछता रहा. मैं बार-बार कहता रहा बहो मत मुझे इन्हें रोकना नहीं आता, लेकिन तुम तो तुम हो. अब याद आता है तो लगता है कि या तो वो आंसू झूठा था या फिर वो रात जो अब केवल काली नजर आती है. खैर जिंदगी में कुछ भी बेवजह नहीं होता शायद अपना किया ही लौटता है बार-बार. मैं भूल गया था उस वक्त कि वो एक जोड़ा कजरारे नैना वर्षों बरसे हैं मेरे लिए. उन्होंने सावन-भादों की रिमझिम और जेठ-अषाढ़ की तपन एक झूठे वादे की आस में ही वक्त की चादर लपेटकर जी है. तुम याद नहीं आते पिघलते हो कभी-कभी रूह से मवाद बनकर, तब अक्सर तुम्हारी आंख का सोता मन भिगो जाता है.
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