मेरी आवारगी

कुछ अधबुना सा तुम्हारे लिए

तुम्हारे बिना तुमसे ही पूरा हूँ।  फोटो गूगल से साभार




मेरी आस्था तुममे नहीं और न ही तुमसे उपजे राग में है. मैं तो तुम्हारी आत्मदर्पण उन कजरी आंखों से प्रेम महसूसता हूं, जो तुम्हारे हर अनकहे को पढ़ने का अल्फाज हैं। मैंने उन्हीं से सीखा है राग और वैराग के बीच का भेद, तभी तो तुमसे कहता हूं खुद की आंखों में जरा गौर से झाकना सीखो तुम भी आवारगी में रम जाओगी. उनसे प्रेम बहता है और कभी-कभी मैं भी रिसता हूं. कितना मुश्किल होता है सरल होना एक बार कठिन होने के बाद. ये प्रेम भी न अफीम जैसा है एक बार जबान पे इसका जायका आ जाए तो आदमी नशेबाज हो जाता है...आवारा.




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