कहीं कोई नजर तेरी भी
होगी मेरी निगाह में/
उस आँख से टपका शून्य
मेरे भी हिस्से का है बस तेरा नहीं/
हमारे वक्त के लिफाफे में
बंद तेरी चुप्पियाँ/
मौन को चीरते तेरे कजरे नैन/
नित नया सा बहता
किसी रिश्ते का मवाद/
वो नासूर के हरे
रहने का अलहदा दर्द/
बहुत गहरे तक घर कर
गई तेरी छुअन/
जिस्म से जर्रे से रूह में
घुली वो ठंडक/
रोटी-मकान की फिराक में
उलझा किसान/
देश की चिंता में डूबा जवान/
सब तो तेरी कत्ल करने
की अदा के कायल हैं/
जिन्दगी तुम किसी
बिरहन से कम नहीं/
ऊपर से मोहब्बत का
हर्फ चढ़ा रखा है/
रिश्तों के असरदार मरहम
और पेट की भट्टी में तेज
होती भूख की आंच/
देर तक चूल्हे में पकता पानी/
शब्दों की बाजीगरी में
तेरा कोई शानी नहीं/
मैं अब पकाना भूल गया हूँ
खुशियों की खिचड़ी/
अक्सर अवसाद की धान के
छिल्के निकालकर निगलता हूँ/
दर्द के अधपके भात...हाँ अधपके भात
आवारा अल्फाज
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