मेरी आवारगी

ईद का वो किस्सा

ईद का वो किस्सा अम्मी ने सुनाया था / जब बादल में छुपा चाँद मंदिर की ओट से निकला था / गाँव में जन्माष्टमी की पालकी गब्बन चचा सजाते थे और मुहर्रम में ताजिये के नीचे से पुजारी रहमत चुराता था / जब रहमान मियां की तान से हर कोई रामायण गाता था / ताजिया उसी मंदिर में बनाया जाता था/ मैं सोचता हूँ ये किस्सा आवारा 'है' से 'था' में आखिर कब और क्यों आया था/ कुछ अनकहा प्यारा होता है/ न हमने उम्मीद की ईदी छोड़ी है और न प्यार की सेवइयां यारों, बस यूँ ही आज गाँव के किस्से से दिल भर आया था/

Post a Comment

0 Comments