वक्त की दीवार पर दबी याद
जेहन में सिमटी वो हर बात
तुम्हारी आँख का यूँ इतराना
उन नजारों की सोंधी राख
बस इतना ही तो चाहता हूँ
कोई लौटा दे वो दिन-रात
जेहन में सिमटी वो हर बात
तुम्हारी आँख का यूँ इतराना
उन नजारों की सोंधी राख
बस इतना ही तो चाहता हूँ
कोई लौटा दे वो दिन-रात
बीती उस हर घड़ी का हिसाब
अब कौन करने आएगा हुजूर
एक करम तो करो के बात बने
न तन जले मेरा न ये आग बढ़े
कहीं तो सर्द गिरे फिजाई गर्द में
अब कौन करने आएगा हुजूर
एक करम तो करो के बात बने
न तन जले मेरा न ये आग बढ़े
कहीं तो सर्द गिरे फिजाई गर्द में
न रहम कर सको तो काम करो
हम जो बदनाम हुए हैं इतना
वही कभी खुलकर सरेआम करो
न तुम जलो न हम जलें रह-रहकर
कभी आओ बैठकर आँखों का जाम
फिर कोई कहानी याद आई है
आवारा बीती बातों की घटा छाई है।
हम जो बदनाम हुए हैं इतना
वही कभी खुलकर सरेआम करो
न तुम जलो न हम जलें रह-रहकर
कभी आओ बैठकर आँखों का जाम
फिर कोई कहानी याद आई है
आवारा बीती बातों की घटा छाई है।
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