मेरी आवारगी

कभी-कभी क्यों लगता है कि सब छूट रहा है...!

गूगल से साभार
कुछ ऊल जलूल खयालों का पुलिंदा

जीवन झरना ही है किसी झरने की तरह सतत। इसमें रुकने की कोई गुंजाइश नहीं और थमना इसकी फितरत को भाता नहीं है। कितनी भी पोथियां पढ़ लो शब्दों के संसार का एक अजब ही रूप है। जिस वक्त जो जज्ब हो जाता है जीवन वहीं ठहरा सा लगता है। ऐसे में जब सब थमा सा लगता है। बहने का मन होकर भी बहा नहीं जाता। एक तराना कोई गुजरी रात का कानों में बजना शुरू हो जाता है। न जाने कैसे अब तक झरना नहीं हो पाया या वो बचा हुआ भी हो सकता है। जीवन कितने समर्पण की रेखाओं से उभरा होता है। इसमें बेमन हुए खुद के तारों से उलझे रहने की कोई जगह नहीं है। मगर फिर भी उलझनें बेहिसाब दिल में घर कर जाती हैं।

सच कहो तो बड़ा निर्मम संसार है, अपना लिखा-पढ़ा और जिया हुआ जिंदगी का ककहरा कभी हंसाता है तो कभी रुलाता है। जब वक्त  पंख लगाकर उड़ रहा होता है तभी ठहरने का मन होता है। कभी लगता है बचपन ठहर गया होता तो जिंदगी सुकून से गुजरती। कभी जवानी के शुरुआती दिन हसीन नजर आते हैं। मामूली से झंझावात भी जिंदगी में सहन नहीं होते हैं। कभी देश की राजनीति सालने लगती तो कभी मौजूदा हालात दिल जलाना शुरू करते हैं। कुल मिलाकर दारोमदार ये है कि बदलते हुए वक्त के निजाम में खुद को स्वीकार करना बड़ा तकलीफदेय है। 

मैं जैसा था दस साल पहले शायद नहीं रह गया हूँ। या ये भी हो सकता है कि जमाने की नजर से देखते हुए खुदी को देखने का चश्मा बदल गया हो। न जाने कितने सवाल लेकर दिन-रात कटते जा रहे हैं और जवाब एक का भी नसीब नहीं होता है। कभी किसी के छूट जाने का वहम होता है तो कभी अजीजों के रूठ जाने का। सवाल फिर भी मुंह बाए खड़ा रहता है। हर एक सवाल कहता है कहाँ से चले थे और कहाँ आए हो किधर जाना चाहते हो। फिकर किस बात की है। गाहे-बगाहे पढ़-पढ़ाकर जो काम किसी चार आने की नौकरी के रूप में मिलता है उसे मुकद्दर समझकर जीना शुरू हो जाता है। मन का काम और खोजा हुआ नसीब जिसके लिए जीना जिया सा लगे वो चंद मुट्ठी भर लोग ही कर पाते हैं। उन्हें भी शायद हर वक्त जेहन में कहीं कोई सवाल कौंधता होगा। 

बेसबर खयालातों को कितना भी जोड़ने की शक्ल में लिखने की कोशिश करता हूँ। अक्सर सब बिखर जाता है। सुख और दुःख की कोई गढ़ी हुई परिभाषा नहीं होती है। सबके अपने-अपने द्वंद हैं और हालातों के लिहाज से ऊपर-नीचे दुनिया अपनी सहूलियतों के हिसाब से हर भाव रच लेती है। नहीं मिल पाता तो बस ईमानदार होकर खुद को तलाशने का हुनर और सामने से गुजरते हुए हर एक पल का आनंद। जिंदगी किसी तलाश की तरह जब तक गुजरती रहती है हमेशा यही लगता है कि कुछ छूट रहा है। 



 

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