मेरी आवारगी

प्यार को बस प्यार ही रहने दो....!!

बीते सालों जब खाप पंचायतों के फरमानों से होने वाले प्रेमी युगलों की मौत पर कई बहसे छिड़ी थीं, तब उन्हें मारे जाने का बड़ा कारण उनका अंतरजातीय होना सामने आया था. सबने अपने-अपने चश्मे से मामले को देखने की कोशिश की. उस दौरान एक छोटा सा पीस जो मैने लिखा था, उसकी एक कटिंग आज साझा कर रहा हूं. मौजूदा समय में प्रेम के नाम पर एक नई बहस सामने आ रही है, जिसे लव-जिहाद का नाम दिया जा रहा है. सबके अपने-अपने मत हैं और आंकड़ों में केरल सहित कुछ और राज्यों में लव-जिहाद को लेकर कोर्ट में याचिकाएं दायर भी हुई हैं. लेकिन कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद ज्यादातर मामलों में तथ्य और कथ्य में भेद देखने को मिला है, बावजूद इसके दो-चार मामले सही पाए गए हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर ये सच है तो क्या ऐसे मामलों की बाढ़ आने पर संज्ञान लिया जाएगा? क्या वाकई ये मामले सच हैं? क्या प्रेम सुनियोजित ढंग से बतौर साजिश धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल हो रहा है? क्या धर्म के नाम पर प्रेम को जिहाद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है? और वाकई में क्या यही जिहाद है?
सवाल बहुत से हैं जो मुंह बाए खड़े हैं, प्रेम यथार्थ है और जीने का वह भाव है, जो इन सारे झंझावातों से परे है. मैं मानता हूं कि जो साजिश के लिए इस्तेमाल हो जाए, धर्म बदल दे, आपको गुलाम बना दे, आपको बदल दे वो प्रेम हो ही नहीं सकता. प्यार वो पवित्र भाव है जिसमें पूर्णता के बारीक रेशे होते हैं, जो व्यक्ति को आजादी देते हैं. जबरन प्यार न किया जा सकता न ही कराया जा सकता है. प्रेम में कोई बंदिश नहीं होती, साजिश नहीं होती. अगर है तो वहां प्रेम है ही नहीं. प्रेम बहने का नाम है, किसी को उसकी समग्रता के साथ महसूसने का नाम है. प्रेम के नाम पर फरेब हो सकते हैं, मगर प्रेम फरेब नहीं हो सकता है. वो न कल झूठ था न आज है और न ही भविष्य में रहेगा.  हाल ही में कई टीवी चैनलों में लव-जिहाद के मुद्दे पर बड़े-बड़े प्रबुद्धों और एंकरों की बहसों को सुना. अजीब लगता है ये देखकर कि इस पर बहस हो रही है. मुझे लगता है इश्क के नाम पर जो छिछला है वो खुद-ब-खुद सामने आएगा और प्रेम वहीं ठहरा रहेगा....अपनी शांत प्रकृति की तरह फिजा में बहता हुआ हर किसी के लिए.


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