मेरी आवारगी

हम आज भी घुले हैं झील के पानी में

फोटो साभार ; हम लोग समूह
उस शहर की हर दीवार में चस्पा है उदासी
मेरी तन्हा रातों के टुकड़े बिखरे हैं सड़क पर
कोई चांदनी छिटकी पड़ी है हमारे हिस्से की
कितने बारीक से उलझे हुए रेशे हैं यादों के
तुम्हारा होकर न होना और लम्बी खामोसी
अब भी रिसती हैं बारिश से कतरनें पुरानी
शहर के किसी मोड़ पे खड़ी हो जैसे तुम
इन्तजार में गुजरे वो बेसबर करते लम्हे
देखो न बह पड़े हैं फिर वो किस्से-कहानी
कागज की बहती नाव में आँख का पानी
मिलना किसे है तुमसे कमबख्त यहाँ आकर
हर चाय की चुस्की में घुलती है तेरी प्यास
बिन बुलाये आते हो हर गली से निकलकर
अक्सर हवा में तैरती मिलती हैं वो बहारें
पुराने बाजार की रौनक में रात की रवानी
गोल-गप्पे के पानी में पिया गया हर पल
अक्सर ठहर जाता है आज में वो कल
तमाम भागदौड़ के बीच अल्हड़ जिंदगानी
दर-ब-दर जहाँ फिरा सब यहीं जिंदा मिला
न तुम गए हो न हम गए हैं वो पल छोड़कर
चले आओ तलाश लेना उसी शहर में मिलेंगे
समेट लेना सूनी सड़कों से रात के सन्नाटे में
कसम तुम्हारी फिर मर मिटोगे आवारगी पर
हम आज भी घुले हैं आवारा झील के पानी में

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