मेरी आवारगी

फुलौरी और उनका कारों से इश्क

ये अकेला ऐसा प्राणी शायद संसार में है जिसने सबसे पहले मां शब्द की जगह कार उचारा हो। बात हमारे फुलौरी और उसके रंवा होते कारों से इश्क की है। यूँ तो उस्ताद बचपन से ही शैतानी में माहिर हैं मगर रफ़्तार की दीवानगी इसमें हर रोज बढ़ती जा रही है।
   जब बोलना नहीं सीखा था और चल नहीं पाता था तब से कारों का शौक पाल रखा है। घर में सब कहते हैं पुराने जन्म का मकैनिक है या कार रेसर। इसके लिए खिलौना मतलब कार और हकीकत में सामने दिख गई तो सवारी बनती है। घर की बाइक पर रोज सैर तो अनिवार्य ही है। दादा जी से बोलता है बाइक...चाबी....चलो। दिनभर बिठाओ कोई लोड नही पठ्ठा हिलेगा नहीं। अब न जाने क्या आकर्षण है उसका रफ़्तार को लेकर समझ नहीं आता है।
  मैं छोटा था तो मुझे बन्दूक के इतर कुछ नहीं सूझता था। खिलौने वाली गन से जितना निशान साधा है उतना असली से नहीं लगा पाया। खैर गए साल की बात है त्रियम्बकेश्वर की यात्रा के दौरान साहबजादे खिलौने की दुकान देखकर थम गए। खुद नन्हे कदमों से आगे चलकर दुकान पर धावा बोल दिया। सबसे बड़ा वाला ट्रक उठाकर लाये और हमारे पैरो के पास रखकर लगे हिलने। जब खिलौना अंदर रख दिया गया तो शहजादे वहीं लोट गए। क्या करते मान मनुहार के बाद दो-चार छोटी कारों से बात बनी। बड़े ट्रक को लंबी यात्रा में सम्भालना मुश्किल था सो करना पड़ा।
   बच्चे अधखुली आँख से मां पुकारते हैं ये कार-कार चिल्लाता है। जब से बोलना सीखा है कार कहाँ गई। कहाँ गई कार ये इनका ध्येय वाक्य बन गया है। सोना भी कारों के साथ है वो भी इनके बेड़े में जितनी कारें हैं सबका बिस्तर पर होना जरूरी है। इतना ही नहीं उनको बाहों में ऐसे भरता है जैसे ससुरा प्रेमिका को सीने से चिपका रखा हो। हिसाब-किताब भी इतना तगड़ा है कि एकाद कार भी नहीं दिखी तो सारा घर सर पर उठा लेना है।
   इस बार जब इससे घर से मिलकर लौटा तो लगा कितना प्रेम है इसे रफ़्तार से न जाने कौन सी रूह है इसमें। सड़क से आती जाती बस, ट्रक, बाइक और कारें न जाने क्यों उसे खींचती हैं। जवाब शायद यही कि उसे रफ्तार में मजा आता है। खिलौने की कारें इतनी जोर से दौड़ाता है कि वो कुछ दिन चल जाएँ तो गनीमत। उन्हें बार-बार टक्कर कराना। दो-चार गुलाटी लगवा देना उसका प्रिय शगल है। उसका बढ़ता कार प्रेम जिस रफ्तार से बढ़ रहा है कोई नया रंग जरूर लाएगा। कुछ भी बेमतलब नहीं होता फिर तो इश्क होता ही अलहदा है रफ़्तार से ही क्यों न हो। तुम्हें रफ्तार मुबारक हो मेरी जान। 

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