मेरी आवारगी

वो अजब फितूरी है...!!

वो बहारों का आशिक था। खुशियाँ उसके दामन में आकर अटखेलियां करती थीं। जहाँ के इश्क से लबरेज था। बेपरवाह और लापरवाह होकर जिंदगी की रवानी में बहता था। उसे जिंदगी में बहुत कुछ छूट जाने का कोई गिला न था। किसी कजरी आँख के कजरे में सब बिसार आया था। फक्कड़ी से गुलजार होकर किताबों में रमता रहा। जिंदगी यूँ ही कटती रही और वीरानों में सुकून तलाशने का हुनर तराश लिया था उसने। गाँव उसकी पहली महबूबा थी मगर उससे भी बेफवाई कर शहर में जन्नत खोज रहा था। गाँव और शहर के बीच झूलता हुआ पशोपेश में था उसे गाँव को जीना था। सफलता के उसके अपने मायने थे, जो पैसे और औहदे के इतर रिश्तों के प्यार समेटने में केंद्रित थे। उसने धन को तवज्जो नहीं दी फिर भी रिश्ते उससे छिटकते रहे फिर भी वो अपनी धुन में लगा रहा। वो कोई किमियागिर नहीं है फिर भी राख को सोना बनाने की फिराक में अब भी है। उसे बस प्रेम से मतलब है और वो इसी तलाश में भटक रहा है। वो हर जगह यही छीटना चाहता है। इश्क के दरख्त उगाने के लिए वो जमीन में जन्नत का सफर कर रहा है गोया कि कोई अलहदा बीज खोज निकालेगा। वो अपनी अनंत यात्रा का सफल यात्री होना चाहता है। जिंदगी यूँ ही खिसक रही है और दुनियावी दयार में उसकी असफलता परवान चढ़ रही है। वो बस रूहों में उतरने के लिए अपने अंतिम पड़ाव में है। एक दिन वो इश्क के बीज बोएगा और जमीन से आसमान तक मोहब्बत के फूल खिलेंगे। ये उसका फितूर है कि चाँद तक उन फूलों की सुगंध बहेगी और धूप में वो फूल रातरानी से महकेंगे।  वो इसी स्वपन के सच होने का सुख आत्मा से भोगना चाहता है। ये 'वो' मैं भी हूँ और तुम भी....।।

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