मेरी आवारगी

आंसुओं में भी मिलावट है...

ये क्योँ है कि
यहां आंसुओँ
मेँ भी  मिलावट है,
आसमां भी तो
रोता है धरा के
लिए. 
कैसे निखार देती है 
वो एक- एक बूंद धरती का 
सौँदर्य ... और हर निगाह सजदा
करती है कि बदरा मेहरबान थे ..
जी भर के बरशे इस बार....
आवारा
गूगल बाबा से साभार मिला एक आंसू 

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