मेरी आवारगी

तुम मुझसे खुद को छीन नहीं सकते

मुझे तुम्हारी याद नहीं आती बस तसव्वुर में रहता हूँ कि तुम आ जाओ। अक्सर तुम रूह के किसी कोने से आवाज देते हो और जर्रा-जर्रा बेचैन हो जाता है। तुम्हें महसूस करने की कोई जरूरत ही नहीं, क्योंकि तुमसे ही मैं पूरा होता हूँ। जब से तुम मिले हो जिंदगी के अधूरे राग पूरे हो गए हैं। मेरी आत्मा की किसी अनंत खोज का तुम वो हिस्सा हो शायद जिसके बगैर मैं पूरा नहीं होता। नियति ने मेरी ये खोज पूरी की हो ये मैं नहीं मानता, क्योंकि उसने हमेशा मुझसे छीनना ही चाहा है। तुम तो मेरी रूह की बेचैनी से उपजा करार हो। तुम जिंदगी के जिस अंधियारे में मिले और मुझे रौशन किया वो कोई काली रात से कम नहीं था। इसीलिए मैं मानता हूँ कि मेरी आत्मा का अधूरापन बगैर तुम्हारे भला कहाँ पूरा हो सकता था। हर मौसम कहता है कि तुम यहीं कहीं हो मेरे आस-पास। बारिश की बूंदों में, बहती हवा में और सर्दी की ठिठुरन में भी तुम मिलती हो मुझे। हर तरफ तुम्हारा अक्स उभरता है और ओझिल हो जाता है। जैसे कि तुम सामने हो और कोई लुका-छिपी का खेल चल रहा हो। मैं जानता हूँ तुम साथ रहोगे हमेशा फिर भी न जाने क्यों कभी-कभी अजीबियत घर कर जाती है, तब लगता है कि तुम्हें जितना पाना था मैंने पा लिया है। तुम भले रूठ जाओ, मुझसे दूर हो, लेकिन मेरे हिस्से की तपन-छुअन और तुम्हारे साथ बीता वक्त तुम कभी मुझसे छीन नहीं सकते। अब तुम कहीं भी रहो मुझमें घुले रहोगे। तुम चाहकर भी मुझसे दूर नहीं जा सकते। मैंने तुम्हें इस गुजरते वक्त के हर लम्हें में टांक दिया है। दिल की दरोदीवार से लेकर जिस्म के पोर-पोर में बहती हो तुम, रूह के हर हिस्से से तुम्हारी खुशबू आती है। ये राग भी है और वैराग भी जो बस तुममे मिलने के बाद उपजा है। मैं तुम्हें बस जीता ही नहीं हूँ जिंदगी में घोलकर पी गया हूँ। और ताउम्र मैं इसी नशे में जीना चाहता हूँ।
-बस यूँ ही एक शाम आवारा तुम्हारे लिए।
चाँद किसी रात औरंगाबाद में।   तस्वीर हमने उतारी 

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