ओम पुरी के साहब के साथ गुजारे वक्त को हमारे समय के एक और संजीदा, प्रतिभाशाली कलाकार दीपक डोबरियाल (Deepak Dobriyal) ने याद किया है। दीपक जी (Deepak Dobriyal) ने ओम पुरी साहब के साथ "3 थे भाई" की शूटिंग के समय और अन्य यादों को अपनी फेसबुक वॉल पर रोमन में साझा किया है। पढऩे में तकलीफ हुई, तो इसे देवनागरी में टांक दिया है।
लुत्फ लीजिए दो कलाकारों की जुगलबंदी का....
कुछ यादें पुरी साहब के साथ
कश्मीर, गुलमर्ग
"3 थे भाई" के शूट के दौरान वो मुझे रोज सुबह फोन करके उठाते, और कहते- "ओये तू सो रहा है अभी तक। मैं तेरा नीचे रेस्टोरेंट में इंतजार कर रहा हूं।" मैं हड़बड़ी में कहता, "सर अभी आया 5 मिनट में।" वो कहते, "सीनियर को वेट कराएगा 5 मिनट??" :) :) :)
और मैं भाग के पहुंच जाता। हम दोनों 3-4 कहवा के कप निपटा लिया करते थे। और सामने मोटी-मोटी बर्फ गिरते देखते थे। तापमान दिन में माइनस 4 और रात में माइनस 10 के करीब रहा करता था।
फिर हम दोनों शूट के लिए तैयार होने जाते। बर्फ में फिसलती गाडिय़ों में बैठा करते और एक दूसरे को शक भरी निगाहों से देखते और कहते, "भाई पहुंच जाएंगे न शूट में??" हर गाड़ी के टायर में लोहे की जंजीरें बंधी होती थीं। ताकि सख्त बर्फ पर गाड़ी फिसल न जाए। फिर 200 मीटर की वॉक और मैं उनका हाथ पकड़ कर बर्फ में धंसते हुए पैरों के साथ उन्हें सेट पर ले जाया करता।
शूट पर पहले ही दिन जेनरेटर स्टार्ट नहीं हुआ ठंड की वजह से। फिर काफी बहस के बाद आर्मी वालों से एंटी फ्रीज फ्यूल लिया गया और काम शुरू हुआ। सेट पे हमारे लिए काफी इंतजाम था।
मिर्जदीप (हमारे डेब्यू डायरेक्टर) अशोक मेहता सर के साथ कैमरा एंगल और मूवमेंट्स के बारे में बात कर रहे थे। डिस्कशन और डीटेलिंग थोड़ी लंबी हो गई। बार-बार दरवाजा गिराया जा रहा था, ताकि धूल का इफेक्ट मिले। बार बार बार धूल और वो भारी दरवाजा। दरवाजा गिरने की आवाज हमारे कमरे तक भी पहुंच रही थी। तो पुरी साहब बोले, "आ जरा देखते हैं ये कर क्या रहे हैं?"
हम दोनों सेट पर गये तो पुरी सर बोले, "ओये दरवाजे से एक्टिंग करवानी थी तो हमें क्यों बुलाया?"
मिर्ज ने ओम जी को एंटरटेन करने का जिम्मा मुझे सौंपा हुआ था ऑफ स्क्रीन और मैं बखूबी निभाता था उसे। :) :) :)
श्रेयस तलपड़े का शूट 4 दिन बाद था। जब वो आया मुंबइ्र से तो ठंड और बढ़ चुकी थी। वो आया और बुरी तरह कांपता रहा। और हमें बोला कि भाई आप दोनों तो नार्थ से हो आपको आदत है ठंड झेलने की, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा यहां। तो ओम जी ने वहां सबको बोला कि हमारे भाई (श्रेयस) को रोज एक घंटा एक्स्ट्रा दिया जाएगा और वहीं हुआ। श्रेयस की वजह से सबको आराम हुआ।
ओम सर, नसीर साहब और अपनी दोस्ती का काफी जिक्र किया करते थे। ऐसा लगा वो मिस कर रहे हैं उन्हें। मैं थोड़ी बहुत नसीर साहब की आवाज निकाल लिया करता था और धीरे-धीरे उन्हें लगा कि नसीर ही हैं उनके साथ। तो वो मुझे बड़े भोलेपन से कहते- यार नसीर अगर ये चाय का कप मांगेगा तो कैसे मांगेगा? और मैं कहता, "अकेले अकेले चाय पीईईईनाााा गुनााााह है पुरी सााााब, गुनााााह हैं...." और पुरी साब हंस हंस के लोट पोट हो जाते। फिर उन्होंने नसीर साहब को फोन लगाया और बोले "अभी बताता हूं नसीर को।" मैंने कहा "नहीं सर पिटवाओगे क्या?" :) :) :) और वो मुझे डरा हुआ देखकर और हंसते। :)
2011 का क्रिकेट वल्र्ड कप जीतने का पूरा श्रेय ओम जी को जाता है दुआओं से.. घर पर ईशान, मैं, मनोज पाहवा भाई और नंदिता जी। एक-एक चौके छक्के पर उछलना और आउट होने पर शोर मचाना।
किस्से हजारों हैं, उतने ही ताजा और जिंदा। 45 दिन का साथ और वो निश्छल और साफ ओम जी, संजीदा ओम जी, बच्चे ओम जी, भोले गुस्से वाले ओम जी और उनकी वो इकलौती आवाज। आप हमेशा मेरे साथ हैं। लव यू।
यह चिट्ठा वरिष्ठ पत्रकार सचिन श्रीवास्तव जी की फेसबुक वॉल से साभार चस्पा किया गया है।
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