मेरी आवारगी

धरा में जब कुछ नहीं बचेगा, तब भी सिर्फ प्रेम बचेगा

फ़ोटो : हमारे झुनझुने से भोपाल की एक खूबसूरत शाम का।

दुनिया में आग लगे तो लगती रहे मैं भी नीरो की तरह फिलहाल प्रेम की बंशी ही बजाना पसन्द करूँगा। क्योंकि जब धरा में कुछ नहीं था तब भी प्रेम था और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी सिर्फ प्रेम ही बचेगा। मैं तुम्हारी नशेमन आँखों के नशे में हूँ और जीवन भर इसमें झूमना चाहता हूँ। रात जैसे-जैसे जवान होती है, इश्क और आवारगी का नशा मेरी रूह में चढ़ता है। ये रातें इश्क की चाँदनी में नहा जाती हैं और मैं आवारगी के लिबास में लिपटा कीमियागर हो जाता हूँ। किसी पारस पत्थर की मानिंद तुम्हारी आँख के पोर से कजरे सा बहना चाहता हूँ। मैं रगों में बहते इश्क में बहक जाना चाहता हूँ , कोई खता हो तो माफ़ करना हुजूर। मैं यूँ ही दरबदर था और बस यूँ ही इश्क की ठोकर में रहना चाहता हूँ। ये इश्क का लबादा हर मौसम में काम आता है। देखो न सर्द मौसम में मैं इससे मोहब्बत की तपिश महसूता हूँ और बीती गर्मियों में भी मैंने इसे जी जुड़ाने वाले किसी सूती कपड़े सा ओढ़ रखा था।
@ आवारा एक सर्द रात तुम्हें ओढ़ता हुआ।

-6 नवम्बर 2016 का एक फेसबुक पोस्ट
#आवाराकीडायरी

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