मेरी आवारगी

तुम मुझे क्यों नहीं मिले पहले...!!

घुमक्कड़ी के दौरान एक सेल्फी। 

तुम्हारे लिए लिखना जैसे खुद की इबारत लिखना है। यूँ तो तुम्हारे साथ होने की रस्म अदायगी का भले ही ये तीसरा साल है, लेकिन तुम्हारा होना मेरे लिए समय से परे है। कभी-कभी तो लगता है जैसे किसी जन्म में मेरी आत्मा पर तुमने ही प्रेम का पौधा रोपा था, जो अमरबेल की तरह मुझमें बिध गया है। जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, ये अब और हरिया रहा है।   मैं इसी समय में हूँ और यहीं ठहरा रहना चाहता हूं। समय की इस यात्रा में हम दो नहीं एक यात्री की तरह आगे बढ़ रहे हैं। तुम्हारा साथ होना इस अहसास को और बल देता है कि हर वक्त यूँ ही खूबसूरत लम्हों में गुजर जाएगा। जैसे ओस की बूंदें घास पर बिखरती हैं और धूप खिलते ही सुनहरी हो जाती हैं, प्रेम में जीवन का हर बसन्त वैसे ही सुनहरा हो जाता है। मैं तुम्हें समय के इसी द्वार पर हमेशा यूँ ही तुम्हारे साथ के लिए खड़ा मिलूंगा। कभी-कभी लगता है कि शब्दों में बिंधा ये बिम्ब न जाने तुम्हें कैसा लगता हो, पर बिना लिखे मैं कुछ बेहतर कह भी नहीं सकता हूँ। या यूं कहूँ कि इन शब्दों के सिवाय कुछ भी नहीं है मेरे पास, तो झूठ नहीं होगा। इसलिए इस एक और खूबसूरत साल के लिए शुक्रिया। तुम्हारे साथ के लिए शुक्रिया। मेरे साथ होने लिए शुक्रिया। 

©तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा

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