मेरी आवारगी

मैं आपकी इसी हंसी को संजोये रखना चाहता हूं...!!



(बब्बा के साथ ली गई 2018 कि एक सेल्फी)

जीवन अनमोल रिश्तों के ऐसे तानेबाने से बुना रहता है कि मोह के धागों में हम बस उलझे रहते हैं। यदि इसका एक भी धागा टूट जाता है, तो ऐसी रिक्तता जन्म लेती है, जिससे चाहकर भी रीत पाना सम्भव नहीं होता है। आज वटसावित्री वाले रोज ही तिथिनुसार बब्बा को मुखाग्नि दी गई थी, उनके बिना एक साल बीत गया। कभी सोचता हूँ तो लगता है कि शायद जीवन से तीव्र बहाव समय का भी नहीं है। बब्बा, आपके बिना उपजी शून्यता जीवन की इसी धारा में बहते हुए अब धीरे-धीरे जिंदगी का हिस्सा हो गई है। लेकिन आपके साथ जिया हुआ स्मृतियों और अनुभूतियों का पूरा का पूरा संसार मन के एक सूने कोने में बंद किंवाड़ के पीछे हिलोरें मारता रहता है।

गांव जाता हूँ, तो घर के चबूतरे में अब नदारद हो चुकी आपकी उपस्थिति जड़ कर देती है। बैठके से होकर घर के अंदर जाता हूँ, तो लगता है कि जैसे आप हो इसी सोफे पर शांत मुद्रा में टिके हुए एक अविस्मरणीय मुस्कान लिये। मैं आपकी बस वही स्मृति संजोये रखना चाहता हूं। मुझे बचपन से लेकर आपके जीवित रहने तक आपका बेफिक्र और मस्तमौला अंदाज हमेशा याद आता है। मुझे याद आता है कि जब पहली अखबारी नौकरी लगी थी, तो  आपने कहा कि "खूब खाये पिये रहेन, हिएन घर के चिंता न करेन, जी ठीक रही तो सब ठीके होई"। आपने हमेशा खाने-पीने और स्वस्थ्य रहने को तरजीह दी। पुराने लोगों की तरह धन इकट्ठा करना कभी आपके जी में नहीं रहा। ऐसा जीवन भी विरले ही जी पाते हैं। गृहस्थ होते हुए भी सन्तों की तरह हर हाल, फिक्र, चिंता, दुःख और सन्ताप में भी एक से शांत भाव के साथ मंद सी अविरल मुस्कान लिए।

आपकी दिलदारी और निश्छल मुस्कान को कोई भला कैसे भूल सकता है। मुझे याद है कि आपके अंतिम समय में वृध्दावस्था ने जब आपकी सारी कांति और आभा हर ली, तब भी आप बिस्तर में सारी दिनचर्या को जीते हुए होने वाली ग्लानि को उसी निश्छल मुस्कान से धोते थे। आपने एक दशक से ज्यादा वो कष्ट भोगा, लेकिन आपकी मुस्कान दादी के स्वर्गवासी होने तक आपके चेहरे से ओझल नहीं हुई। दादी के जाने के बाद भी आपने अपने एकमात्र हंसने के भाव को चेहरे पर लाने के कई असफल प्रयास किये, लेकिन आपकी हंसी आंसू बनकर आंखों से आखिरी छह सालों में लगातार टपकती रही।

मुझे याद है 90 का वो दशक और स्कूल की छुट्टियों वाले गर्मी के दिन, जब आपकी मध्यम हंसी को ठहाकों का बल मिलता था। स्कूल की छुट्टियों के दिनों में बुआ और हमारे सारे भाई-बहन नाना-नानी के घर पर जुटते थे। लगभग 2 माह का समय धमाचौकड़ी में बीतता था। पूरी दोपहर चंदा-गोटी, शतरंज, ताश, लूडो, सांपसीढ़ी जैसे इनडोर गेम्स और आपके ठहाकों से गुलजार रहती थी। कभी चेस की बाजी तो कभी ताश के पत्तों इन दोपहर गुजरती थी। बचपन के उस दौर में कभी-कभी हम बच्चे आपसे कुश्ती का शौकिया दांव भी आजमाते थे। कितना सुखद होता था आपकी दोनों टांगों के बीच फसकर खुद को छुड़ाने का असफल प्रयत्न और फिर पंजे लड़ाने का दमखम। दोपहर बीतने के बाद घर के आसपास गांव की गली में उपलब्ध सारे चटोरे पदार्थ आप उपलब्ध करा देते थे। खस्ते, समोसा, कचौड़ी से लेकर मीठे तक सब हाजिर होता था, आपके नाती-पोतों और नवासों के लिए। इस सबके बीच लाड़-प्यार और स्नेह का कितना पराग आपने हम सबके अंदर कुड़ेला कि उसकी चाशनी में हम-सब आज तक पगे हैं।

मुझे याद है कि अपनी सरकारी नौकरी के रिटायरमेंट के बाद आपने खाने-खिलाने और हंसने-हंसाने की तो जैसे पाठशाला ही खोल ली थी। घर के चबूतरे पर जमने वाली बतकही की महफिलें देर रात तब तक चलतीं रहतीं जब तक अंदर से रात के खाने का बुलावा न आ जाये। इन जमघटों में चाय और स्नैक्स के साथ-साथ चून-तंबाकू-सुपाड़ी वाले  दौर चलते ही रहते थे। उन दिनों  न जाने गांव के कितने युवाओं ने आपकी थैली (मलमल के कपड़ों से बनी कई पर्त वाली तम्बाकू दानी) से ही अपनी चून-तंबाकू-सुपाड़ी की लत को जिंदा रखा। मुझे याद है कि आपके पास प्रेम से जो भी आये छोटा हो या बड़ा सबको बिना भेदभाव के खुराक मिलती थी। अभी यूँ ही लिखते हुए बहा जा रहा हूँ, तो ये सब भी याद आ रहा है कि कैसे आपको लकवा लगने के बाद ये महफ़िल उजाड़ हुईं और फिर आपके स्वथ्य होने के बाद भी वो महफिलें जवान न हो सकीं। और धीरे-धीरे आपके ठहाकों ने मंद मुस्कान का रूप ले लिया और राह चलते लोगों को छेड़कर हंसाते रहने वाली वो कला भी सुस्त होती चली गई। आप भले ही अब नहीं हैं, लेकिन आपकी उन ठहाकों भरी जमघटों की यादें लोगों के जेहन में अब भी जिंदा हैं। गांव में उन बतकहियों और जमावड़ों का गवाह रहा हर व्यक्ति आज भी वो दौर याद करता है।

आप हमेशा कहते रहे और करके भी चले गए कि सारे तीर्थ मन के अंदर हैं। खाओ-खिलाओ, हंसो-हंसाओ दुनिया में जोड़ना-घटाना किसलिए है। बस मुस्कान फैलाते रहो। जब कभी असफल हो और कुछ न कर सको, तो मौन साध लो और शांति और मुस्कान भर लो अपने अंदर। हर द्वंद और विकट स्थिति से निपटने का मार्ग मिल जाएगा।

बब्बा आपके हर कहे-अनकहे के बीच आपकी निश्छल हंसी मेरी आत्मा में अब तक बिंधी हुई है। मैं बस इसे ही संजोए रखना चाहता हूं। क्योंकि मृत्यु ने जब आपका आलिंगन किया, तो आपका शरीर भले नष्ट हो गया, मेरी स्मृतियों और अनुभूतियों में छिटकी आपकी हंसी सदा यूँ ही खिली रहेगी। आप जहां भी होंगे, मुझे यकीन है आपकी मुस्कान सलामत होगी और आप उसे बिखेर रहे होंगे।

#आवाराकीडायरी 

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