मेरी आवारगी

चाँद और मैं बतकही : लघुकथा

योरकोट राइटिंग्स

चाँद और मैं दोनों साथ-साथ चले थे, अपने-अपने हिस्से की चाँदनी के लिए। तुम नहीं जानते कि तुमसे रुखसती के बाद चाँद और मैं अक्सर अपनी-अपनी तन्हाइयों तले बैठकर बाते करते हैं। ऐसी ही एक उदास शाम जब मैं तुम्हें याद कर रहा था, तो चाँद ने कहा तुम हमेशा अपने चाँद की बातें करते हो। भला मुझसे भी खूबसूरत चाँद है कोई इस जहान में ? मैंने कहा ये तो इश्क की गलियां हैं हुजूर, यहां हर किसी के अपने चाँद और चाँदनियाँ हैं। सब मोहब्बत से रौशन हैं और चाँदनी बिखेरते हैं। मैं जो हर दफा तुम्हें अपना चाँद मानने से इंकार कर देता हूँ, उसके लिए रश्क न करो। तुम तो मुझे बस इश्क करने दो। चाँद ने कहा ये जो मेरी चाँदनी में नहा रहे हो और मुझे चाँद कुबूलने से कतरा रहे हो, कसम है तुम्हें रौशनी से महरूम कर दूंगा।  मैंने भी कह दिया मैं तो इश्क से रौशन हूँ। मेरी उदासियों में भी मेहबूब का नूर झलकता है। मैं तो उस चाँद से दूर होकर भी उसमें आबाद हूँ। वो तो मेरे वजूद  में घुल गया है। इस धरा पर तो मेरा बस एक ही चाँद है, जिसकी चाँदनी मेरी रूह का लिहाफ़ है...इससे तो मुझे खुदा भी महरूम नहीं कर सकता है। मेरे इसी जवाब के बाद ही तो चाँद का दिल दरक गया है, उसमें गड्ढे पड़ गए हैं और दूर से दिखते हैं। 

© दीपक गौतम 
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