मेरी आवारगी

मृत्यु कभी-कभी ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल दागती है




भले ही मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सच हो, जिसे स्वीकार करना पड़ता है। लेकिन सच यही है कि मृत्यु के आलिंगन के बाद दुनिया का सारा धन, ऐश्वर्य, सम्पदा, मोह-माया, राग-अनुराग, प्रेम, घृणा, संताप, संवेदना, भक्ति, आस्था, धर्म, कर्म, सत्कार और यश-कीर्ति जो भी है सब यहीं धरा रह जाता है। ऐसे में लगता है कि इस नश्वर जीवन का भार ढोते हुए यदि कुछ ऐसा नहीं किया जो समाज की बेहतरी के लिए हो तो सारा किया धरा पूरी तरह से व्यर्थ है।

खासकर किसी अपने की मृत्यु आपको अंदर तक हिला देती है। उस क्षण सहज उपजा मरघट ज्ञान आपकी आत्मा को अवलोकित कर देता है। एक क्षण में दुनिया और ये सारा जीवन व्यर्थ लगने लगता है। ऐसे अनुभव कई बार अलग तरह से अपने सह अस्तित्व, मानव जीवन और उसके अंतिम लक्ष्य के बारे में सोचने पर विवश करते हैं।

इन दिनों कोरोना काल में जब मृत्यु के आंकड़े एवं ग्राफ लगातार बढ़ रहे हों और पूरी दुनिया में मरघट का सन्नाटा पसरा हो। यूँ लगता है कि ईश्वर या सर्वशक्तिमान जैसा यदि कुछ है तो कहां है ? बरखा की तरह बूंद-बूंद झर रही जिंदगियों में आखिर वो कौन सा सौंदर्य देख रहा है? उसकी इच्छा परिवारों को उजाड़ करने की कैसे हो सकती है ? पहले ही कोरोना की मार झेल रहे परिवारों का सहारा छीन लेने वाला ईश्वर कैसे हो सकता है ? तब लगता है कि ईश्वर जैसा कुछ है भी या नहीं !

इस कोरोना काल के बीच परिवार में हुई एक हृदयविदारक घटना के बाद लगातार यह सवाल कौंध रहा है कि यदि ईश्वर है तो कहाँ है ? 25 अगस्त को हुई इस दुर्घटना ने चाचा जी और उनके बड़े बेटे को असमय लील लिया। एक ऐसा व्यक्ति जिसने लगभग पूरा जीवन करंट से खेलते हुए वही काम करते हुए गुजार दिया हो वो भला करंट से कैसे मर सकता है ! इतनी कुशलता से काम करने वाला व्यक्ति आखिर कैसे खेत में टूटी पड़ी तार नहीं देख पाया और उसकी चपेट में आ गया ? है ईश्वर तुम्हारी कृपा यहीं नहीं थमी उन्हें बचाने गया उनका बड़ा पुत्र भी उसी करंट की चपेट में आ गया ! आधे-एक घण्टे बाद नजदीकी चिकित्सालय में दोनों को मृत घोषित किया गया।

इस पूरे मामले में प्रथम दृष्टया बिजली विभाग की लापरवाही तो है ही कि सर्विस लाइन की तार टूटने के बाद भी टूटी तार में घन्टों तक करंट दौड़ता रहा। नियमतः तार टूटते ही करंट सप्लाई बंद होनी चाहिए थी। लेकिन गांव-घर में ऐसी दुर्घटनाएं होती रहती हैं और व्यवस्था जस की तस लचर बनी रहती है। इस पूरी दुर्घटना को लेकर बिजली विभाग तो सवालों के घेरे में ही है। जवाब तलाशने की भी पूरी कोशिश की जाएगी और विभाग को इसके लिए जवाबदेह होना होगा कि आगे ऐसी दुर्घटनाएं न हों।

मानवीय या विभागीय चूक के इतर जब इसे अलग दृष्टिकोण से देखो, तो लगता है कि यह ईश्वर की कृपा है या निष्ठुरता ? आस्थावान लोग भजन गाते हैं ''भगवान सहारा तेरा है...'' लेकिन यहां वही भगवान एक परिवार का सहारा छीन लेता है। प्रकृति में घट रहा प्रत्येक क्षण, प्रत्येक घटना उसकी इच्छा से है। तो फिर ऐसी घटनाओं में उसकी इच्छा कैसे सम्मलित है। यह तो एक दुर्घटना है, लेकिन इस कोरोना काल में करोड़ों परिवारों का सहारा छीन लिया है तुमने ईश्वर ? लाखों-करोड़ों लोग अनाथ हो गए, करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर हैं, करोड़ों मौत के गाल में समा गए ? ये तो प्रलय जैसा काल चल रहा है कि तुम मृत्यु का उत्सव मना रहे हो, फिर भी कैसे और क्यों कहें कि "भगवान बस एक सहारा तेरा है"।

नि: शब्द हूँ कि तुम कृपालु हो
निःशब्द हूँ कि तुम दयालु हो

- तुम्हारा गढ़ा एक हाड़-मांस का पुतला

Post a Comment

0 Comments