मेरी आवारगी

एक लापता नोट !

हमारे झुनझुने से ढलते सूरज का लिया गया एक चित्र

कुछ अलहदा लकीरें पेशानी में उभरी थीं उस रोज...जब अलविदा सा अल्फाज कहने का सुकूने-अहतरम भी जेहन में न रहा, उन लम्हात में तक़दीर की लिखावटों ने भी अजब करवट ली। गोया कि अब नई इबारत लिखते वक्त पुराने पन्ने हवा में अक्सर फड़फड़ाते रहते हैं, वो लकीरें अब तक़दीर में सिमट गई हैं। उन्हें धूमिल करने की तदबीर अब गायब है। हाँ तुमसे इश्क है, जिसमें तुम्हारा और मेरा होना जरूरी नहीं, बार-बार का मिलना-बिछड़ना जरूरी नहीं, कुछ कहना-सुनना जरूरी नहीं। हाँ इसमें हमारा निकट और दूर होना भी कोई मज़बूरी नहीं। आंसू से आँख और कलम से कलाम अब कुछ नहीं मांगते वो लकीरें बनाते हैं बस लकीरें...।

#आवाराकीडायरी
( अजीबियत सा कुछ: सालों पहले लिखा लापता नोट )

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