मेरी आवारगी

ईश्वर अपनी रसोई की हांडी में बस प्रेम पकाता है।

ये तस्वीर अलसुबह हमारे झुनझुने से कैद की गई।

प्रेम किसी एक छंद में नहीं बसा, किसी एक दिन में नहीं बंधा। प्रेम अनंत है, वो तो ईश्वर का खिलाया हुआ ऐसा फूल है जिसकी खुशबू से पूरी कायनात महक रही है। गाँव की कच्ची रसोई में चूल्हे पर चढ़ी ये हांडी  भी प्रेम पका रही है।  

मुझे तो लगता है कि ईश्वर की रसोई में तो ये "प्रेम की हांडी" आदिकाल से चढ़ी है। वो संसार का सारा ज़हर अपने आंसुओं का रसायन मिलाकर इसी हांडी में स्नेह की आंच से उबालता है। तब कहीं जाकर हलाहल गरल से प्रेम की छटाक भर ''अमृत बूंद'' निकलती हैं। ईश्वर बस प्रेम का ही लोभी है। वो प्रेम का ही लेन-देन करता है। वो बस प्रेम ही पकाता है। ये तरल इसी हांडी में पककर ''अमृत'' हो जाता है। अमरता प्रेम के इसी रसायन में है। वास्तव में "प्रेम ही अमृत'' है। 

यही प्रेम जीवन को जन्नत बनाता है। इंसानियत सदियों से इसी एक 'शब्द' को जीने में खप रही है, फिर भी बहुतेरे प्रेम की कस्तूरी को बस खोजते ही रहते हैं। अपनी तो आत्मा इसी में बिंधी पड़ी है। 

इस इक रूहानी जज़्बात के मिल जाने से रूहें महक जाती हैं। बस प्रेम ही है, जिसकी डोर में सारी दुनिया रचने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर भी बंध जाता है। बिंदुजी का लिखा भजन है कि "प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा, उनका मान टले टल जाए भक्त का मान न टलते देखा"। इसी प्रेम के एक बारीक धागे से पूरी दुनिया बंधी है। हर सजीव के अंदर बस यही धड़कता है। क्योंकि जब धरा पर कुछ नहीं था, तब भी सिर्फ प्रेम था। यही एक सत्य है। जीवन में जितना प्रेम बटोर सको बटोर लो और जितना बांट सको बांट लो, यही असल है। बाकी सब माया है। क्योंकि इंसान इसी प्रेम से इंसान बना रह पाएगा। दुनिया का हर दर्शन इसी ढाई आखर में सिमटा पड़ा है। संत कबीरदास कह गए हैं "पोथी पढ़-पढ़ जग मुआं पण्डित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय"। 

जिंदगियां प्रेम से आबाद होती रहें। प्रेम के फूल हर घर-आँगन में खिलते रहें। जिंदगी जिंदाबाद। इश्क जिंदाबाद। आवारगी जिंदाबाद। आप सभी को प्रेम का त्यौहार मुबारक। हैप्पी वेलेंटाइन डे मेरी प्रेम प्यारी Namita 💝

- 14 फरवरी 2021

© दीपक गौतम 

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यह कविता प्रतिष्ठित वेबसाइट मध्यमत में प्रकाशित  हो चुकी है .

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